Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 11
________________ સરલતા પત્ર - - - - - - सरलता पत्र लेखक. मुनिहेमेन्द्रसागर (गतां १०४ १८० थी यातु) परस्त्रीयों की ओर माता की भांति दृष्टि हो, औरांके द्रव्य और पत्थर को समान समझे । प्राणी मात्र को जो अपनी आत्मा के समान मानता है, वही देखता है, और वही पंडित है। आज दुनियां सरलता का अर्थ मूर्खता में ले जाती है। अपनी ऐसी मान्यता ठहरा रखते हैं कि सरल मनुष्य का कोई सिद्धान्त नहीं हो सक्ता । हर एक रंग में वह मिल जाता है। यह उनकी गहरी भूल है। ___ सरलगुण आत्मा अपना पथ कायम रखता है उतना कोई नहीं रख सकता, बुद्धि तत्त्व से रहित हो और कार्या कार्य के विवेक सें शून्य हो वही मूर्ख माना जाता है। सरलता आत्मिकगुण है । सरल हो ते हुए भी राजनीतिज्ञ पुरुष प्रशंसनीय माने गये है, और माने जा रहे है। सरल आत्मा हमेशां दुराचारों से बचता हुआ रहता है। कभी दुराचारियों की हाँ में हाँ नहीं भरता । वज्रादपि कठोराणि, मृदुनि कुसुमादपि। ... . लोकोत्तराणां चेतांसि, केन ज्ञातुं हि शक्यते ॥१॥ अपने नियम पालन में वज्र सा कठोर मालूम पडता है। ओंरों के प्रति शुभ भावना रखने में पुण्य से भी बढ कर कोमल जान पडता है, ऐसे लोंकोत्तर पुरुषों के चित्त को जानने में कौन शक्तिमान हो सक्ता है, निश्चयी सरल आत्मा (सत्यं शिवं सुन्दरं) इस ध्रुव सूत्र का उच्चारण करने में तनिक भी मृत्यु. नहीं हो सकती मृत्यु से उरने वाला हो कायर ' या अधर्मी माना जाता है। शरीर का मृत्यु, है परंतु आत्मा का नहीं, सरलगुण धारी आत्मा के साथ सम्बन्ध रखता है ज्ञानदर्शन चारित्रमय शाश्वत है। गुणवान सर्वदा अदीन मन. में अपनी आत्मा का निरीक्ष करता रहता है, मृत्यु से कभी नही डरता । "प्राण जावे देह तजके आज ही या भले ही कल। .. न मुझको दोष दो कोई कि, था डरपोक मरने का ॥ . . . बिता या है सदा मैने सुजीवन नाम पाने में । वही मरने से डरता है जो पापी या अधर्मी है ॥ .

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