Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ શ્રી સિદ્ધચકસ્તેત્રમ ર૩૬ ॥ उपाध्यायपदस्तवनम् ॥ ॥राग-सत्तेअसयाअजिअं०। सज्झायगुणी पसमे । दव्वेणायरिए विदमे ॥ मुणिपुजभव्वयकमे। वंदमि भंगनयाइगमे ॥ भुअगपरिरिंगिअयं ॥१६॥ ॥ राग-सोमगुणेहिं पावइ० ॥ आगमविण्णे सुद्धचरणे गणहियरसिए। संसइखिण्णे गच्छसरणे सुहमइलसिए॥ धम्मविहिण्णे वुत्तकरणे गुणचयतसिए। सग्गुणकिण्णे तित्थतरणे नयदुगमइए ॥ खिजिअयं ॥१७॥ ॥राग-तित्थवरप्पवत्तयं० ॥ सिक्खणभेयदेसगे वरनियमरए। उत्तमजणपूइए कयमयविलए ॥ मेय पमेयभासिए हयकवडगए। भव्वे नमेह वायगे नियपर सुहए ॥ ललिअयं ॥१८॥ ॥राग-विणओणयसिरि० ॥ . ममयाहिविसपसरणहमइभवियवोहए सुहए। सुयतोसिय सुयगुण भवियण पवयणभावणे पवणे ॥ हयदुग्गइगमणकसायगणमयणवायगे सरमो । जिणसासणगयरयगयण विहासणभक्खरे सययं ॥ किसलयमाला ॥१९॥ ॥ राग-असुरगरुलपरिवंदिरं ॥ निरुवमवयणपरूवणे, दूसणाइपरिवजणे। बंधमोक्खाइयभासणे, णममि वायगगुरू सया ।। सुमुहं ॥२०॥ ॥साधुपदस्तवनम् ॥ ॥राग-अभअंअणहं० ॥ समणे समिए विरए विमए।। पसमे पदमे पर्णमामि मुणी विज्जुविलसि ॥२१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52