Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 40
________________ ૨૩૪ જૈન ધર્મ વિકાસ ॥ राग-छत्तचामरपडागजवजवमडिया। चक्कधारगविसिट्ठसमसुहदायगं। जिणवइसमुवगयभवयसंकडतायगं॥ कम्मपयारकट्ठदहणाणलसंनिहं । वंदमि पणपयारचरणं बलिणिव्वहं ।। ललिअयं ॥३२॥ । श्रीतपःपद स्तवनम् ।। ॥ राग-सहावलट्ठा समप्पइट्ठा० ॥ महप्पहावं बहुस्सहावं। विणकाम पमोयगामं॥ खमाइवासं गुणप्पयासं। णममो णिच्चं तवं भव्वच्चं ॥ वाणवासिया ॥३३॥ ॥राग-ते तवेण धुअसवपावया ॥ सीलरुक्खगणवुड्विारियं । सग्गसिद्धिसुहसुक्खसंदयं ॥ कम्मकह दहणग्गिसम्मयं । तं तवं थुणमि हं जयप्पयं ॥ अपरांतिका ॥३४॥ ॥श्रीसिद्धचक्र स्तवनम् ॥ ॥ राग-एवं तवबलविउलं ॥ इस्थं नवपयपयरो-मए मुया पवरमंतपसमयरो। जिणवइसासणपवरो-थुओ महाणंदओ जयरो ॥ गाहा ॥३५॥ . ॥ राग-तं बहुगुणप्पसायं०॥ तं पवरसिद्धचक्कं-कम्मयरू परिलुणेइ जह चक्कं । चक्किस्स कप्परुक्खं-अहिलसियपयाणपुण्णदक्खं ॥ गाहा ॥३६॥ ॥राग-तं मोएउ अ नंदि॥ तं चिंतंबुहिपोयं-संणासियविग्धभीइगयसोयं । परिणंदियभविलोयं-जयउ सुकयबोहिपज्जोयं ॥ गाहा ॥३७॥ ॥राग-पक्खियचाउम्मासिअ०॥ संघगिहे एसो मया-कल्लाणतई करेउ सुयपाढो। रिद्धी सिद्धी बुड्डी-गणणा सवणाउ भत्तीए । गाहा ॥३८॥

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