Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
Publisher: B L Nyayatirth

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Page 11
________________ ( ७ ) वहां संस्कृतानभिज्ञ 'हिन्दीभापी' ज्ञानपिपासु एव स्वाध्याय प्रेमी बन्धुओं को भी जैन दर्शन के मुख्य मुख्य सिद्धान्तों की सरलता से जानकारी मिल सकेगी। अनुवादक महोदय धन्यवादाह है। श्री मल्लिनाथन की प्रस्तावना भी बड़ी महत्व की है-वह तथा पारिभाषिक एवं क्लिष्ट शब्दो के नोट्स भी पूर्व संस्करण की तरह इसमें है ही। प्रस्तुत तृतीय सस्करण है। इसके पूर्व सन् १९५० में प्रथम एवं सन् १९६५ मे द्वितीय संस्करण छप चुके है। श्री नाथूलाल वज ट्रस्ट की ओर से यह तृतीय सस्करण छपा है। स्व० श्री नाथूलालजी बज की श्रद्धेय प० चैनसुखदासजी पर बडी श्रद्धा थी। उन्ही के प्रेरणा से शिक्षा-संस्था, औषधालय एवं साहित्य प्रकाशन हेतु श्री बजजी ने जो ट्रस्ट बनाया-उसके लिए हम उस दिवंगत प्रात्मा के आभारी है। ' प्रस्तुत संस्करण का प्रूफ पढ़ने में श्री पं० भवरलालजी पोल्याका,,जैन दर्शनाचार्य ने जो सहयोग प्रदान किया है-एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र है। प्राशा है छात्र एवं पाठकगण इससे लाभ उठावेगे। , मनिहारो का रास्ता, जयपुर-३ भंवरलाल न्यायतीर्थ १-७-७४

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