Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 8
________________ [ छः ] की दशा में लाकर पटक दिया है। इस विषम स्थिति में एक ऐसे शोधपूर्ण ग्रन्थ की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, जिसमें निश्चय और व्यवहार नयों के आगमसम्मत स्वरूप को युक्तिप्रमाणपूर्वक विश्लेषित किया जाय और आगम में आत्मादि पदार्थों के शुद्धअशुद्ध, साध्य-साधक, निमित्त-उपादान आदि जिस रूप की जिस नय से यथार्थता प्रतिपादित की गई है, उस नय से उसकी यथार्थता को तर्क और प्रमाण द्वारा स्थापित किया जाय तथा कुछ विषयों की कतिपय विद्वानों ने जो भ्रान्तिपूर्ण व्याख्याएँ की हैं, उनका सयुक्तिक निराकरण किया जाय। सौभाग्य से आदरणीय डॉ. रतनचन्द्र जी जैन ने पीएच. डी. उपाधि के निमित्त से ऐसा शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखकर इस महती आवश्यकता को पूर्ण किया है। हम इस ग्रन्थ को प्रकाशित कर हर्ष और गौरव का अनुभव कर रहे हैं। हम डॉ. रतनचन्द्र जी के अत्यन्त आभारी हैं जिन्होंने दीर्घ परिश्रम से लिखा गया यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हमें प्रकाशनार्थ प्रदान किया। हम आभारी हैं डॉ. सागरमल जी जैन के, जिनके प्रयास से ही उक्त ग्रन्थ हमें प्रकाशनार्थ प्राप्त हो सका। ग्रन्थ के प्रकाशनसम्बन्धी सम्पूर्ण दायित्व का निर्वहन विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ. श्रीप्रकाश जी पाण्डेय ने कुशलता से किया है, एतदर्थ हम डॉ. पाण्डेय के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। ग्रन्थ की सुन्दर अक्षर-सज्जा के लिए नया संसार प्रेस, भदैनी, वाराणसी एवं सुरुचिपूर्ण मुद्रण के लिए वर्द्धमान मुद्रणालय, वाराणसी भी निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं। भूपेन्द्र नाथ जैन मानद सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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