Book Title: Jain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Author(s): Manorama Jain
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 7
________________ समर्पण और कृतज्ञता ज्ञापन प्रस्तुत ग्रन्थको लिखनेका प्रमुख श्रेय मेरे अध्यात्म गुरू, नित्य स्मरणीय, परमश्रद्धेय गुरूदेव श्री जिनेन्द्र वर्णीजीको प्राप्त है । जिन्होंने अपनी दिव्य ज्ञान ज्योति से पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित इस गहन विषय के मार्मिक तथ्योंका अवबोध कराने में अथक प्रयास किया है। उनके द्वारा प्रदीप्त की गई ज्योति अन्त तक पथप्रदर्शिकाके रूपमें प्रज्वलित रही। उनके जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश से जो सहायता मिली उसे शब्दोंमें व्यक्त नहीं किया जा सकता। इस जीवन में अध्यात्म ज्योति को प्रदीप्तकर अमृतत्व प्रदान करने वाले अध्यात्मयोगी परमश्रद्धेय गुरूदेवके श्री चरणोंमें यह कृति सादर समर्पित है। शोध प्रबन्धके रूपमें विषयका प्रतिपादन कराने का श्रेय महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक के तत्कालीन संस्कृत विभागाध्यक्ष परम आदरणीय डॉ० जयदेव विद्यालंकार जी को प्राप्त है ।उनका हृदय से धन्यवाद करती हूँ। ब० अरिहन्त कुमार जैन, कालका निवासी कु० कौशल जैन, डॉ० सुधा जैन, डॉ० निर्मला जैन, डा० सुधीकान्त भारद्वाज, डा० सागरमल जैन, डॉ० दरबारीलाल कोठिया, डॉ० आशामलैया आदि विद्वानों की शुभकामनाओं तथा सहयोग के लिए हृदयसे कृतज्ञ हूँ | दिवंगत पिता श्री रघबर दयाल जैनकी शुभ कामनाएं, आदरणीया माता श्रीमती कान्ती देवी, एवं भ्राताश्री अनन्तवीर जैन और मुख्याध्यापिका श्रीमती मोहिनी शर्मा के सहयोग लिए हृदय से कृतज्ञहूं। अन्त में जिनसे भी इस कार्य की पूर्णताके लिए यथाकिंचित सहयोग मिला सबका हृदयसे धन्यवाद करती हूं। श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला पानीपतके प्रबन्धक श्री सरेश कुमार जैन ने इस शोध प्रबन्धको ग्रन्थमाला से प्रकाशित करवानेकी व्यवस्था की है और भाई आदेश कुमारने द्रव्य प्रदान कर प्रकाशन कार्यमें सहायता की है उसके लिए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हुई प्रस्तुत कृति को पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करती हूं। जैन कर्मसिद्धान्त का तुलनात्मक अवबोध कराने में तथा कर्मबन्धनसे कर्ममुक्ति की साधना को स्पष्ट करने में यदि किंचित् मात्र भी सहायता इस ग्रन्थ से मिल सकी तो मेरा यह परिश्रम सफल होगा। यथा सार्मथ्य सुप्रयास होते हुए भी त्रुटियोंके लिए क्षमायाचना चाहती हूँ। विज्ञजनोंसे मेरा हार्दिक निवेदन है कि अपने उपयोगी सुझाव देकर अनुगृहीत करें। बाल ब० डॉ० मनोरमा जैन, रोहतक Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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