Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ वर्शन और विज्ञान दिया जाता है, यह यथार्थता नहीं है क्योंकि विज्ञान सब कुछ जानकर कृतकृत्य तो नहीं हो गया है। वैज्ञानिक लोग कभी कभी जन-साधारण का अन्ध-विश्वास प्रकट करते करते अपना ही अन्ध-विश्वास प्रकट कर देते हैं। उल्कापात का विचार इस विषय में ज्वलन्त उदाहरण है। “सौर-परिवार" पृष्ठ ७०५ पर उल्का प्रकरण में “वैज्ञानिकों का अन्धविश्वास" शीर्षक से लिखा गया है—केवल जनता ही सदा अन्ध-विश्वास में नहीं होती। कभी कभी वैज्ञानिक भी अन्ध-विश्वासी होते हैं और जनता ठीक रास्ते पर रहती है । यूरोप में मध्यकालीन समय में जैसे जैसे विज्ञान की उन्नति होने लगी तैसे तैसे वैज्ञानिकों का विश्वास बढ़ता गया कि पत्थर आकाश से गिर नहीं सकते और इसलिए उन्होंने मान लिया कि वे कभी पहले गिरे भी नहीं थे। जनता की बातों को कि आकाश से पत्थर गिरते हुए देखे गये हैं, उन्होंने अन्ध-विश्वास का परिणाम समझा। इसलिए वे उनकी हँसी उड़ाया करते थे-जिन्होंने लिखा था कि ऐसी घटनायें प्रत्यक्ष देखी गई हैं। इस विषय में प्रालीबियर ने अपनी “उल्कायें" (Meteors) नामक पुस्तक में लिखा है--अब हम अठारहवीं शताब्दी के दूसरे भाग में आते हैं। इसके पहले वाली शताब्दियों में कई उल्का-प्रस्तर गिरे थे और उन का कोई एक स्पष्ट वर्णन उन लोगों ने किया था, जिन्होंने अपनी आँखों से देखा था । तिस पर भी इतना प्रमाण देते हुए हमको मुर्खता और पक्षपात के उदाहरण मिलते हैं, जिनको उस समय अच्छे वैज्ञानिकों के नेताओं ने दिखलाया। ये लोग निस्संदेह अपने को सबसे अधिक अग्रसर और 'आधुनिक' समझते थे और दूसरे भी उनको ऐसा समझते थे। इसे सब काल के लिए ऐसे व्यक्ति को चेतावनी समझनी चाहिए, जो ख्याल करता हो कि वह अपने अनुभव के बाहर की बातों का निश्चित रूप में निर्णय कर सकता है। फ्रांस की वैज्ञानिक एकेडमी ने लूसे में पत्थर गिरने के विषय में सच्ची बात की खोज करने के लिए एक कमीशन भेजा। अनेकों ऐसे गवाहों की जिन्होंने स्वयं अपनी आँखों से ऐसी घटनाओं को देखा था, गवाही लेने पर भी इस कमीशन ने यही निर्णय किया कि पत्थर गिरा नहीं, वह पृथ्वी पर का ही पत्थर था, केवल उस पर बिजली गिरी थी। इससे भी बुरा उदाहरण अभी पानेवाला था। सन् १७६० की २४ जुलाई को दक्षिण-पश्चिम फ्रांस में फिर पत्थर गिरे । बहुत से पत्थर गिरे और पृथ्वी में धस गए। इसके साथ की अन्य घटनायें (प्रकाश इत्यादि) सैंकड़ों मनुष्यों ने देखीं। तीन सौ से अधिक लिखी शहादतें, जिनमें से कई तो सौगन्ध खा कर सच्ची बताई गई थीं; पेश की गईं और पत्थर के टुकड़े भी पेश किये गए। वैज्ञानिक पत्रिकाओं ने इनको छापा तो अवश्य, परन्तु केवल इसीलिए कि वे जनता की मूर्खता और गप्पों पर विश्वास करने की आदतों की हँसी उड़ा सकें । बर्थलन के शब्द-और कहा. जाता है यह अन्य वैज्ञानिकों के मत को Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 154