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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान सापेक्षवाद की भी विचित्र समालोचनाएं हुईं, पर आज वह वैज्ञानिक जगत् में बीसवीं सदी का एक महान् आविष्कार सर्वसम्मततया मान लिया गया है।
उपसंहार __ कुछ एक विचारकों का मत है कि स्याद्वाद और सापेक्षवाद में कोई तुलना नहीं बैठ सकती; क्योंकि स्याद्वाद एक आध्यात्मिक सिद्धान्त है और सापेक्षवाद भौतिक । वस्तुस्थिति यह है कि दोनों ही वाद निर्णय की पद्धतियाँ हैं अत: कोई भी आध्यात्मिकता या भौतिकता तक सीमित नहीं है । यह एक गलत दृष्टिकोण है कि स्याद्वाद प्राध्यात्मिकता तक सीमित है । वह तो अपने स्वभाव से जितना आत्मा से सम्बन्धित है उतना पुद्गल (भूत) से भी। जब वह समानतया दोनों के ही विषय में यथार्थ निर्णय देता है तो इस अर्थ में अपने आप सिद्ध हो जाता है कि जितना वह आध्यात्मिक है उतना ही वह भौतिक भी । यद्यपि वैज्ञानिकों का विषय भौतिक विज्ञान ही है, अतः सापेक्षवाद का लक्ष्य उससे आगे नहीं बढ़ पाया इसलिये यह भौतिक पद्धति ही माना जाता है । पर वास्तव में यह भी स्याद्वाद की तरह वस्तु को परखने की एक प्रणाली है । इसे आध्यात्मिक या भौतिक कुछ भी कहें यह अधिक यथार्थ नहीं है । फिर भी इसे यदि भौतिक पद्धति भी मानें तो भी परमाणु से ब्रह्माण्ड तक के भौतिक (पौद्गलिक) पदार्थ तो स्याद्वाद व सापेक्षवाद दोनों के विषय होते हैं । इसलिए स्याद्वाद और सापेक्षवाद के सम अंशों की तुलना अपना एक महत्त्व रखती है।
स्याद्वाद और सापेक्षवाद की आश्चर्योत्पादक समता से हमारे चिंतन के बहुत सारे पहल उभर आते हैं। आज तक जो दर्शन और विज्ञान के बीच की खाई अधिक से अधिक चौड़ी होती जा रही थी इस प्रकार से यदि चिंतन समान धारा से बहने लगेगा तो सम्भव है कि भविष्य के किन्हीं क्षणों में वह खाई पट सकेगी।
स्याद्वाद को संशयवाद के रूप में समझने की जो एक भूल चली आ रही थी, लगता है सापेक्षवाद के द्वारा समर्थित उसकी वैज्ञानिकता उसको नामशेष ही कर देगी।
दर्शन से पराङ मुख व विज्ञान के प्रति श्रद्धालु व्यक्तियों को स्याद्वाद व सापेक्षवाद की पूर्वोक्त समानता यह सोचने का अवसर देगी कि दर्शन जैसा कि वे समझते हैं एक बूझबूझागरी कल्पना नहीं बल्कि वह चिन्तन की एक प्रगतिशील धारा है जिसकी दिशा में विज्ञान आज आगे बढ़ने को प्रयत्नशील है। दोनों वादों की समानता से हर एक तटस्थ विचारक को यह तो लगेगा ही कि स्याद्वाद ने दर्शन के क्षेत्र में विजय पाकर अव वैज्ञानिक जगत् में विजय पाने के लिये सापेक्षवाद के रूप में जन्म लिया है।
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