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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान चीज का अस्तित्व स्वीकार करना ही पड़ता है। इस कोई चीज को हम क्षणिक तौर से वस्तु या वास्तविकता का नाम देते हैं और यह वही वास्तविकता या वस्तु है, जो आज विज्ञान का लक्ष्य बना हुआ है। लेकिन साथ-साथ यह भी बात मालूम होती है कि आज के ५० वर्ष पूर्व के वैज्ञानिक ईथर, कम्पन और लहरों से वास्तविकता का जो अर्थ निकालते थे, उससे अाज की वास्तविकता नितान्त भिन्न है । क्योंकि उन पुराने वैज्ञानिकों के स्तर में और एक क्षण के लिए उसकी भाषा में बोलने से ईथर और उनकी तस्से बिल्कुल सिद्ध नहीं हो सकतीं, तो भी वे बहुत वास्तविक पदार्थ हैं जिनके विषय में हमारा ज्ञान और अनुभव हो सकता है और इसलिए वे इतने वास्तविक हो सकते हैं, जितनी कि सम्भवतः हमारे लिए कोई चीज हो सके ।"
धर्म-द्रव्य के स्वरूप को भली प्रकार से जानने वाले व्यक्तियों के लिए यह जान लेना अत्यन्त आसान होगा कि कल्पना की विविध भल-भुलैयों को पार करते हुए वैज्ञानिक किस प्रकार धर्म-द्रव्य के आगम-प्रतिपादित स्वरूप के अत्यन्त आसन्न पहुँच रहे हैं। उनकी चिरकालीन बद्धमूल धारणायें उन्हें तथा प्रकार के प्रभौतिक 'पदार्थ के स्वीकरण में रोकती हैं तथापि प्रकृति की वास्तविकता उन्हें अपने निकट खींचे ही जा रही है।
धर्म-द्रव्य और ईथर कहाँ तक एक हैं, इस विषय में एक दो महत्त्वपूर्ण उद्धरण देकर विषय को और भी सुस्पष्ट कर दिया जाता है । भौतिक विज्ञान की प्रमाण-भूत पुस्तक "भौतिक जगत् की प्रकृति" में ए० एस० एडिंगटन द्वारा लिखा गया है.---"इसका' यह तात्पर्य नहीं कि ईथर नहीं है । हमको ईथर की जरूरत है। गत शताब्दी में यह आमतौर पर माना जाता था कि ईथर एक द्रव्य है, जो पिण्ड रूप है, सघन है, साधारण द्रव्य की तरह गतिमान है । यह कहना कठिन होगा कि
___ 1. This does not mean that the ether is abolished. We need an ether............in the last century it was widely believed that ether was a kind of matter having properties such as mass, rigidity, motion like ordinary matter. It would be difficult to say when this view died out...............now-a-days it is agreed that ether is not a kind of matter, being non-material, its properties are Suigeneries (quite unique) characters such as mass and rigidity which we meet with in matter will naturally be absent in ether but the ether will have new and definite characters of its own............non-material ocean of ether.
--The Nature of the physical World, p. 31.
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