Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 130
________________ पृथ्वी : एक रहस्य पृथ्वी का स्वरूप मानव मस्तिष्क में पृथ्वी हमेशा ही एक रहस्य बनकर रही है। वह कब से बनी, कब इसका नाश होगा और अब वह कैसे रह रही है-श्रादि प्रश्नों को मनुष्य सुलझाता रहा है। मनुष्य का ज्ञान ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता है, पहले की कल्पनायें उसके लिये उपहासास्पद बनती जाती हैं। वह यह नहीं सोचता कि आज मैं जो सोच रहा हूँ, सुदूर भविष्य में वह भी उस उपहासास्पद शृंखलाओं की एक कड़ी हो जायेगी। पृथ्वी के इन प्रश्नों के विषय में पहले के लोग कैसा विचित्र सोचा करते थे और आज का विज्ञान भी कैसी विचित्र कल्पनाओं को लेकर चलता है, यह एक ज्ञातव्य विषय है। "प्राचीन हिन्दू धर्मावलम्बियों का विश्वास था कि पृथ्वी ईश्वर की कला है और शेषनाग के मस्तक पर टिकी हुई है। यूनानियों का विश्वास था कि पृथ्वी एक बड़ी चपटी छत की भाँति है जो बारह खम्बों पर टिकी हुई है। ये खम्बे हरक्यू लीज़ के खम्बे कहलाते हैं। एक मत यह भी था कि शाप के वश एटलस नामक दैत्य पृथ्वी को उठाये हुए है। प्राचीन यहूदियों द्वारा पृथ्वी अण्डाकार विश्व का निचला भाग मानी जाती थी।" आकार के बारे में भी नाना मत थे। "किसी ने पृथ्वी को नल के समान माना तो किसी ने छ: पहलवाली माना; किसी ने पृथ्वी को खरबूजे के समान तो किसी ने ताम्बूलाकार । कोलम्बस ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया था कि पृथ्वी शंखाकार है।" वैज्ञानिक-कल्पना आधनिक विज्ञान में भी पथ्वी की उत्पत्ति व स्थिति सम्बन्धी कुछ कल्पनायें इससे भी आले दरजे की हैं। वहाँ माना गया है-"कम से कम दो अरब वर्ष पूर्व यह घटना घटित हुई होगी कि एक अन्य तारा अाकाश में अन्धाधुन्ध चलता हुआ १. हिन्दी विश्व भारती, भाग १, पृ० २८ । २. हिन्दी विश्व भारती, भाग १, पृ० ३१ । 3. We believe. nerertheless, that some thousand million years ago this rare event took place, and that a second star, wandering blindly through space, happened to come within hailing distance of the sun. Just as the sun and moon raise ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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