Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 48
________________ परमाणुवाद ३९ वहन सामान्य रूप से हो सके वह पुद्गल-स्कन्ध अति स्थल (Solid) कहलाता है। जैसे—भूमि, पत्थर, पर्वत आदि । जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन न हो सके किन्तु अन्यत्र वहन हो सके उस पुद्गल-स्कन्ध (Liquids) को स्थूल कहते हैं । जैसे-घृत, जल, तैल आदि । जिस पुद्गल-स्कन्ध का छेदन-भेदन अन्यत्र वहन कुछ भी न हो सके ऐसे नेत्र से दृश्यमान पुद्गल-स्कन्ध (Visible Energies) को स्थूल-सूक्ष्म कहते हैं । जैसे-छाया, तप आदि । नेत्र को छोड़कर चार इन्द्रियों के विषय भूत पुद्गल-स्कन्ध (Ultra visible but intra sensual matter) को सूक्ष्म स्थूल कहते हैं । जैसेवायु तथा अन्य प्रकार की गैसें । वे सूक्ष्म पुद्गल-स्कन्ध जो प्रतिन्द्रिय हैं (Ultra sensual matter) को सूक्ष्म कहते है । जैसे—मनोवर्गणा, भाषा-वर्गणा, काय-वर्गणा आदि के सूक्ष्म पुद्गल । ऐसे पुद्गल-स्कन्धों को जो भाषा-वर्गणा व मनोवर्गणा के स्कन्धों से भी सूक्ष्म हों, अतिसूक्ष्म (Altimate atom) कहते है । जैसे—द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि । तीन भेद-जीव और पुद्गल की पारस्परिक परिणति को लेकर पुद्गल के तीन' भेद किये गये हैं १-प्रयोग परिणति । २-मिश्र परिणति । ३-विस्रसा परिणति । ऐसे पदगल जो जीव द्वारा ग्रहण किये गये हैं वे प्रयोग परिणत कहलाते हैं। जैसे-इन्द्रियाँ, शरीर, रक्त, मांस आदि । ऐसे पुद्गल जो जीव द्वारा परिणत होकर पुन: मुक्त हो चुके हैं उन्हें मिश्र परिणत कहा जाता है । जैसे-कटे हुए नख, केश, श्लेष्म, मल, मूत्र आदि । ऐसे पुद्गल जिनमें जीव का सहाय नहीं और स्वयं परिणत हैं उन्हें विस्रसा परिणत पुद्गल कहा जाता है । जैसे—बार्दल, इन्द्र-धनुष 'आदि। शब्द, छाया, आतप आदि भी पुद्गल हैं जैन-दर्शन में पुद्गल के कुछ ऐसे भेद-प्रभेद माने हैं, जिन्हें प्राचीन काल के अन्य दार्शनिक पुद्गल रूप में स्वीकार नहीं किया करते थे । पर उनमें से बहुत सारों को आधुनिक विज्ञान ने अब पुद्गल रूप में मान लिया है । वे पदार्थ हैं शब्द ', अंधकार छाया, आतप (धूप), उद्योत प्रभा आदि । १. तिविहा पोग्गला पण्पत्ता-पयोगपरिणया, मिससा परिणया, विससा परिणया। -भगवती शतक ८.११ । २. शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद तमश्छाया तपोद्योत प्रभावांश्च । -श्री जैन सि० दी प्र.१ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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