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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त एक कल्पना की वस्तु ही नहीं रह गया था अपितु वह गणित सिद्ध भी मान लिया गया था। संक्षेप में हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं-इस विश्व में प्रत्येक भौतिक पदार्थ प्रत्येक इतर भौतिक पदार्थ को एक ऐसे बल से अपनी पोर आकर्षित करता है जो इनके द्रव्यमानों पर अनुलोमतः और इनकी दूरी के वर्ग पर व्युत्क्रमतः निष्पन्न है। उदाहरण— “यदि पदार्थों के द्रव्यमानों का गुणनफल ४ है और दो अन्य पदार्थों के द्रव्यमानों का गुरणनफल २० है तो पीछे वाले द्रव्यों में आकर्षण का बल पहले वालों का २०/४ अर्थात् ५ गुना होगा। यदि दो पदार्थों के बीच में ३० फीट का अन्तर है और दो अन्य पदार्थों के बीच में १२० फीट का तो पिछले वालों में जिसमें अन्तर पहले वालों से ४ गुना है, आकर्षण-बल उनका १/१६ गुना होगा।"
न्यूटनं युग से लेकर अब तक गुरुत्वाकर्षण का विचार भूगोल और खगोल सम्बन्धी समस्याओं का एक आधारभूत समाधान रहा। सापेक्षवाद के युग में गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त अस्तित्व शून्य विचारों में अन्तभित हो गया है। प्राईस्टीन के कथनानुसार विश्व में कोई आकर्षण जैसी तथाकथित वस्तु नहीं है। विश्व की जो घटनायें आकर्षण रूप से हमें निष्पन्न लगती हैं वस्तुतः वे परिभ्रमरणशील पदार्थों के वेगजनित देश का ही एक गुण है । गुरुत्वाकर्षण की कल्पना पर सापेक्षवादी युग में ऐसा सोचा जाने लगा है; एक नतोदर कमरे के बीच हम एक तकिया रख दें और फिर वहाँ बैठ कर उन चारों दिशाओं में चार गोलियाँ फेंकें। यह स्वाभाविक है कि उस कमरे की नतोदरता के कारण चारों गोलियाँ उस तकिये से आकर टकरायेंगी। हमारा कितना भ्रम होगा यदि हम यह कल्पना करें कि तकिये में कोई आकर्षण है। देखने की बात यह है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त कल जो परम सत्य के रूप में सोचा जाता था आज वह किस स्थिति तक पहुँच गया है।
इस प्रकार बदलते निर्णयों में विज्ञान का सत्य हमेशा संदिग्ध रहता है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने जो अब तक नहीं जाना है, जो वस्तु-सत्य उनकी कल्पना में नहीं आ सकता है, उसे बहुत शीघ्र वे असत्य करार दे देते हैं । यह अपनी ज्ञानसरणिका अनुचित अहम् होता है। जिस विषय में विज्ञान ने अब तक नहीं सोचा है या सोचने पर भी जो बुद्धिगम्य नहीं हुआ है वह असत्य ही है यह कैसे हो सकता है ? मनुष्य हमेशा अल्पज्ञ है । उसे अपनी अल्पज्ञता को भूल नहीं जाना चाहिए । विज्ञान के वातावरण में जो कुछ भी विज्ञान-सम्मत नहीं है; वह अन्ध-विश्वास की कोटि में डाल
१. ज्योतिर्विनोद से ।
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