Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 11
________________ जैन दर्शन और माधुनिक विज्ञान महत्त्व है। इसीलिए कहा गया है---"ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः" जहाँ हम विज्ञान के लक्ष्य और परिभाषा की चर्चा करते हैं वहाँ केवल जान लेने मात्र का आग्रह मिलता है। सृष्टि के रहस्यों को खोलते जामो व सत्य को पाते जानो इससे आगे वहाँ कुछ भी नहीं मिलता। ___दर्शन का उद्गम दर्शन को बहुत सारे लोगासही रूप से नहीं जान पाए हैं। उनकी दृष्टि में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा चलाये गए विभिन्न धर्म ही विभिन्न दर्शन हैं । इसलिए वे सोचते हैं दर्शन युक्ति-प्रधान न होकर व्यक्ति-प्रधान है, पर स्थिति इससे सर्वथा भिन्न है । दर्शन का जन्म ही तर्क की भूमिका पर हुआ है । दर्शन-युग से पहले श्रद्धायुग था। महावीर बुद्ध, कपिल आदि महापुरुषों ने जो कुछ कहा वह इसी प्रमाण से सत्य माना जाता था कि यह महावीर ने कहा है और यह बुद्ध या कपिल ने कहा है ज़िस पुरुष में जिसकी श्रद्धा थी उस पुरुष के वचन ही उसके लिए शास्त्र थे । तर्क का युग़ आया । मनुष्य सोचने लगा-उस पुरुष ने कहा है इसलिए हम सत्य मानें ऐसा क्यों ? सत्य का मानदण्ड तर्क, युक्ति व प्रमाण होना चाहिए। यहीं से दर्शन का उद्गम हुआ । इसलिए यह मानकर चलना अज्ञान है कि दर्शन तर्क-प्रधान न होकर केवल श्रद्धा-प्रधान है। दर्शन में दुर्बलता का संचार तब हुआ जब सभी लोगों ने अपने अपने श्रद्धास्पद पुरुषों को मान्य रखकर उनके द्वारा प्रतिपादित तत्त्वों को तर्क और युक्ति से सिद्ध करने का प्रयत्ल किया। परिणामस्वरूप जैन, बौद्ध, सांख्य, नैयायिक वैशेषिक आदि दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ। वैसे तो सभी दर्शन अपने आप में युक्ति पुरस्सर हैं, पर इस यक्तिमत्ता के नीचे अपने अपने आराध्य पुरुषों की श्रद्धा सुस्थिर है ही। केवल युक्ति ही सब दर्शनों का आधार होता तो दो और दो, चार की तरह सम्भवतः सभी के निर्णय एक ही सत्य को प्रकट करते । तथापि यह तो सुनिश्चित है ही कि दर्शन के क्षेत्र में अणु से लेकर ब्रह्माण्ड तक के विषय में बहुत कुछ सोचा गया है; तर्क, युक्ति और प्रमाण की विभिन्न कसौटियों पर कसा गया है । दार्शनिकों के निर्णय बूझ-बुझागरों की उड़ान कदापि नहीं है । विज्ञान का इतिहास विज्ञान का इतिहास दर्शन से बहुत कुछ भिन्न है। विज्ञान की प्राधार भूमिका पर किसी परम पुरुष की प्रामाणिकता नहीं मानी गई है । लगता है-विज्ञान चचिन्तन धर्म और दर्शनों के विवादास्पद निर्णयों से ऊबकर एक स्वतन्त्र धारा के Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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