Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 12
________________ अध्याय 1 श्रमण परम्परा श्रमण परम्परा का उदय कब हुआ यह कहना अति कठिन है ! किन्तु हमे जब से भारतीय संस्कृति एव इतिहास की झलक दिखाई देती है, तभी से श्रमण परम्परा का उल्लेख प्राप्त होता है । वैदिक साहित्य मे श्रमण परम्परा के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं, इतना ही नही अनेक बातो में वैदिक संस्कृति श्रमण परम्परा से प्रभावित होती है । इस प्रसंग में भारतीय संस्कृति के निष्णात विद्वान् डा० वासुदेव शरण अग्रवाल के विचार महत्वपूर्ण है : "हून पुराणो से हमारा तात्पर्य यह बतलाना है कि भारतीय संस्कृति में निवृत्तिधर्मी श्रमण परम्परा और प्रवृत्ति मार्गी गृहस्थ परम्परा दोनो बटी हुई रस्सियो की तरह एक साथ विद्यमान रही और दोनो मे बहुत कुछ आदान-प्रदान चलता रहा । श्रमण परम्परा के कारण ब्राह्मण धर्म ने वानप्रस्थ और सन्यास को प्रश्रय दिया । " ऋषि, मुनि - दो रत्न भारतीय परम्परा ऋषियों-मुनियों की परम्परा है। ऋषि और मुनि दोनो ज्ञानी और आत्म-द्रष्टा माने जाते है । ससार के प्राचीनतम धर्मग्रन्थ 'वेद' में ऋषि तथा मुनि दोनो का वर्णन है । 'ऋषि' को मन्त्र - द्रष्टा की सज्ञा दी जाती है । वह जंगल में निवास करता है, हवन आदि से देवताओ को प्रसन्न करता है और पवित्र जीवन व्यतीत करता है । ऋषि प्रायः पत्नी तथा बच्चो सहित बन में रहकर सध्योपासना करता है ।

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