Book Title: Jain Achar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 14
________________ आहार क्यो? १६८ १७१ १७२ आहार क्यो नही ? १६७ विशुद्ध आहार आहार का उपयोग आहार-सम्बन्धी दोप एकभक्त १७५ विहार अर्थात् गमनागमन १७६ नौकाविहार १७७ पदयात्रा १७८ वसति अर्थात् उपाश्रय १७८ सामाचारी १८३ सामान्य चर्या १८४ पर्युषणाकल्प १८७ भिक्षु-प्रतिमाएँ १६० समाधिमरण अथवा पडितमरण १६५ ६. श्रमण-संघ १९९.२१५ गच्छ, कुल, गण व संघ आचार्य उपाध्याय प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणावच्छेदक व रत्नाधिक २०५ निग्रंथी-सघ वैयावृत्य २०६ प्रायश्चित्त २०४ ग्रन्थ-सूची २१७ अनुक्रमणिका २२१ २०० २०१ . . दीक्षा .

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