Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ दरमियान आचार्य श्री द्वारा 'जैनम् टुडे' अगस्त, 2016 के अंक में 'पू. अभयदेव सूरिजी खरतरगच्छीय ही थे' इस प्रकार के प्रचार हेतु लेख दिया गया था तथा अभी-अभी “खरी-खोटी' नाम की पुस्तिका छपी है, जिसके परिशिष्ट में भी यह लेख दिया गया है। __इस प्रकार मेरे सामने अभयदेवसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी संबंधी प्रश्न उपस्थित हुए थे, जिनका उत्तर देना जरुरी था। अभयदेवसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी गुरुभाई थे। जिस गच्छ के अभयदेवसूरिजी थे, उस गच्छ के ही जिनचंद्रसूरिजी थे। अभयदेवसूरिजी के गच्छ के विषय में निर्णय हो जाने पर संवेगरंगशाला के कर्ता जिनचंद्रसूरिजी के गच्छ का निर्णय भी हो जाएगा। अतः वास्तव में नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी कौन से गच्छ के थे? तथा क्या वे खरतरगच्छ के कहलाने चाहिये या नहीं? विषय में निर्णय हेतु प्राचीनतम प्रमाणों के आधार से ऐतिहासिक संशोधन करना जरुरी लगा। ऐतिहासिक प्रमाणों के मंथन से प्राप्त सार स्वरूप सत्य इतिहास सभी को प्राप्त होवे इस हेतु यह ऐतिहासिक शोध प्रबंध प्रगट किया जा रहा है। जनसामान्य एवं संक्षेपरूचि जीवों की रूचि बनी रहे, इस हेतु से मूल लेख में प्रमाणों का केवल सूचन ही किया है, उनका संदर्भ ग्रंथ-पाठ सहित विश्लेषण पीछे के परिशिष्टों में दिया है। विशेषार्थी एवं विद्वज्जन उसका अवश्य अवलोकन करें ऐसा नम्र निवेदन प्रस्तुत किये गये ऐतिहासिक शोध प्रबंध में सत्य इतिहास को ही प्रगट करने का उद्देश्य है, अतः मध्यस्थता से इसका अध्ययन करके एक महान ज्योतिर्धर के इतिहास को न्याय देवें, ऐसी वाचक वर्ग से अभ्यर्थना। सत्य को प्रगट करने के साथ-साथ किसी की भावना को ठेस न पहोंचे उसका ध्यान रखा गया है, फिर भी किसी को मनदुःख हुआ हो ता क्षमा करें। जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो..... मिच्छा-मि-दुक्कड़म्... ता. क. :- अगर कोई ऐतिहासिक त्रुटि ध्यान में आवे तो अवश्य सूचन करें ताकि उसे सुधारा जा सके। / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /010 )