Book Title: Indian Society for Buddhist Studies
Author(s): Prachya Vidyapeeth
Publisher: Prachya Vidyapeeth

Previous | Next

Page 21
________________ (6) वैदिक - बौद्धयुगे च नार्य्यः स्थानमेकं तुलनात्मकम् समीक्षणम् असरफ अली, कोलकता पृथिव्यां सर्वेः सृष्टेः मूलं नारी-पुरुषयोः समपरिश्रमयोः पलश्रुतिः। तयोः सम्मिलितप्रचेष्टयोः वहवः विवर्तनेभ्यः अधुनातन आधुनिक समाजस्य उत्पत्तिः भवति। वर्त्तमान समाजे नारी-पुरुषोः कम्मोः अधिकारः गुरुत्वं वा अधितरः, यद् विषये प्रतिनियतम् आलोचनां पर्यालोचनां प्रतियोगीञ्च प्रचलति वयं आत्मभ्यः आधुनिकाः इति वदामः। परन्तु अधुनापि नार्य्यः पुरुषसमानः अधिकारः सर्वादा च न दत्तवान्। अद्यापि नारीं भोग्य - पन्य रूपेण पश्यामि । घातकरूपेण च प्रतिदिनं कन्याभ्रूनं कन्याशिशुं च हत्या वीरपुरुषस्य संख्या वृद्धिं करोमि । नारीं कन्यासन्तानोत्पादाननिमित्तं दायः प्रयच्छामि । नारीजातीं गृहस्य वन्दिदशात् पर्दाप्रथात् च किं मुक्तिः प्रदानं शक्नोमि ? अथच् वयं उत्तरितानि वेदिक-बोद्ध युगौ । उभयोः युगयोः नार्य्याः कथमासन् तयोः समाजे, तसैव तुलनात्मकं समीक्षणम् आलोच्य सन्दर्भे वर्णीतम् । ***** वर्तमान समाज की मानसिक समस्याओं के समाधान में धम्मपद की भूमिका ज्योति तावडे, उज्जैन धम्मपद देश कालादि निरपेक्ष होकर जीवन की कला सिखाने वाला ग्रंथ है। इसमें प्रतिपादित सत्य सजनिक, सार्वदेशिक व सार्वकालिक है। मनुष्य के जीवन में किन कारणों से सुख और दुख आते है अथवा आ सकते हैं उनका विश्लेषण यह ग्रंथ करता है। दुख से किस प्रकार मुक्ति पाकर सुख प्राप्त किया जा सकता है इसका मार्ग यह ग्रंथ बताता है यही इसका धर्म है। कुशल कर्मों

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110