Book Title: Indian Society for Buddhist Studies
Author(s): Prachya Vidyapeeth
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 40
________________ (25) तमिल प्रदेश में बौद्ध धर्म दिलीप धींग, चेन्नई भारतवर्ष की गौरवशाली श्रमण परम्परा के जैन धर्म और बौद्ध धर्म का तमिलप्रदेश के लिए ऐतिहासिक योगदान है। इस निबंध के जरिये तमिलप्रदेश में बौद्ध धर्म के अस्तित्व और योगदान के बारे में बताया जा रहा है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म का तमिलनाडु में आगमन माना जाता है लेकिन कुछ विद्वानों के मतानुसार तीसरे संगम काल के बाद अर्थात् ईस्वी सन् तीसरी शताब्दी के बाद ही बौद्ध धर्म का तमिल प्रदेश में आगमन हुआ होगा। उनके इस मत का कारण यह है कि तीसरे संगमकाल के काव्यों में बौद्ध धर्म का उल्लेख नहीं हुआ है। कुछ विद्वान इस मत से भिन्नता रखते हुए कहते हैं कि तीसरे संगम कालीन काव्य कृतियों में भले ही बौद्ध धर्म के सन्दर्भ अनुपस्थित हैं, लेकिन उस युग में रचित मणिमेखले, शिलप्पदिकारम और मदुरैकांची जैसे काव्यों में इस धर्म के बारे में पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं। इसके अलावा बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा रचित कविताएँ इस तीसरे संगमकालीन संकलनों में मिलती है। इससे यह अनुमान लगता है कि तीसरे संगम काल अर्थात ई० सन प्रथम या द्वितीय शताब्दी से पूर्व बौद्ध धर्म का तमिलप्रदेश में आगमन हो चुका था। मौर्य शासक अशोक के शिलालेखों से भी यह स्पष्ट होता है कि ई० पूर्व तीसरी सदी में बौद्ध धर्म का तमिल प्रदेश में आगमन हो गया था। यह तथ्य अशोक के दो शिलालेखों से स्पष्ट होता है। गिरनार के द्वितीय अभिलेख के अनुसार सम्राट अशोक मानव और पशुओं के लिए दो प्रकार के चिकित्सालय बनवाते हैं। उनके इस अहिंसक सेवाकार्य का विस्तार चोल, पाण्ड्य, सूर्यपुत्र, केरल पुत्र और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक भी था। अहिंसा और सेवा के द्वारा जनता का दिल जीत लेने को ही अशोक ने सच्ची विजय माना है इस बात को पेशावर के निकट प्राप्त ई० पूर्व 258 के शिलालेख में इंगित किया गया है सेवा से लोगों का दिल जीतकर धर्मप्रचार को इस शिलालेख में सच्ची विजय कहा गया है। यह 'विजय' तमिलप्रदेश तक भी विस्तारित थे। बौद्ध ग्रंथ

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