Book Title: Indian Society for Buddhist Studies Author(s): Prachya Vidyapeeth Publisher: Prachya VidyapeethPage 41
________________ (26) महावंश और दीपवंश से यह अनुमान होता है कि अशोक के समय में बौद्ध धर्म श्रीलंका में पहँच चुका था। इससे यह स्पष्ट होता है कि जब बौद्ध धर्म श्रीलंका तक पहुँचा तो वह तमिल प्रदेश होकर पहुँचा होगा। बर्मा में उपलब्ध टैलिंग रिकॉर्ड के अनुसार कांचीपुरम के निकट अशोक द्वारा बनवाए विहार में पाँचवीं सदी में बौद्ध भिक्षु धम्मपाल (धर्मपाल) निवास करते थे चीनी बौद्ध यात्री हयूवानसांग (1 वीं सदी) ने भारत यात्रा की और उनकी यात्रा वृतांत लिखा। उस वृत्तांत में उन्होंने कांचीपुरम् में अशोक द्वारा बनाए गए सौ फीट ऊँचे जीर्ण बौद्ध स्तूप देखने का जिक्र किया। उन्होंने चोल प्रदेश में भी अशोक द्वारा बनवाए एक बौद्ध विहार का उल्लेख किया है इसके अलावा पांड्य प्रदेश में अशोक के छोटे भाई महेन्द्र द्वारा निर्मित संग्राम ( बौद्ध विहार) और स्तूप भी थे कुछ गुफा लेख भी बौद्ध धर्म के ई० पू तीसरी सदी में तमिलप्रदेश में आगमन की सूचना देते हैं इन गुफाओं में बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनी प्रस्तर शय्याओं के नीचे अभिलेख उत्कीर्ण है। ___ इन सब साक्ष्यों से यह पता चलता है कि तीसरी सदी में तमिलप्रदेश में बौद्ध धर्म का प्रवेश हो चुका था। प्रवेश के बाद यहाँ बौद्ध भिक्षुओं और प्रचारकों ने राजाओं, वणिकों और धनाढ्य लोगों से प्राप्त आर्थिक सहयोग से बिहार, पाठशालाएँ आदि बनवाए। उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा और सेवा के कार्यों से लोगों का मन जीता। विभिन्न सेवाकार्यों के अलावा बौद्धों ने तमिल साहित्य के विकास में भी अपना योगदान किया। तमिल में पाँच महाकाव्य माने जाते हैं- शिल्पादिकारम, मणिमेखले, जीवक चितामणि, वळयापति और कुण्डलकेशी। इनमें मणिमेखलै और कुण्डलकेशी बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा रचित हैं और शेष तीन जैन धर्मावलंबियों द्वारा रचित हैं। मदुरै कूलवाणिकन चीत्तले चात्तनार द्वारा रचित मणिमेखलै बौद्ध धर्म बोधक तमिल का श्रेष्ठ कथात्मक प्रबंध काव्य है कण्डलकेशी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा रचित और भी साहित्य मिलता है काफी साहित्य काल के प्रवाह और आपसी संघर्ष में खो भी हो गया। 'मणिमेखलै' काव्य के अनुसार दूसरी शताब्दी में कोवलन की पुत्री मणिमेखले ने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली थी। वह चक्रवाळकोट्टम से सम्बन्धितPage Navigation
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