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परिणाम नहीं थी अपितु उनका धर्म दुःखमय संसार के तट से निर्वाण रूपी तट तक ले जाने वाला एक सेतु था, जिसका आधार जीवन के अपरिहार्य दुःख की अनन्तता है । इस रूप में तथागत बुद्ध की धमचर्या दुःख की प्रवृत्ति का अनुभव कर उसकी निवृत्ति के लिये किया गया अनवरत प्रयास है, जो संबोधित की चरमता को प्राप्त कराकर मानव को निर्वाण के परमपद तक पहुँचाता है । बुद्ध की धर्मदेशना सर्व साधारण जन के लिए थी, इसलिये उन्होंने धर्म उपदेश के लिए लोकभाषा का आश्रय लिया, जो बौद्ध धर्म प्रसार में अत्यधिक सहायक एवं सफल
रहा ।
तथागत बुद्ध की लोकप्रियता दिन व दिन बढ़ती ही रही क्योंकि बुद्ध के समय में और धर्म प्रवर्तक मौजुद थे, लेकिन कोई भी धर्म या उनके विचार सामान्य लोगों के जीवन के बारे में सोचता नजर नहीं आता है । लेकिन तथागत बुद्ध ने आम तौर पर समाज के पिछड़े वर्ग से लेकर राजा महाराजाओं तक सभी को एक समान मानकर मानवीय क्रांति की शुरुआत की थी । बुद्ध के धर्म का आधार ही मानवीय दुःख रहा है। मनुष्य के जीवन में दुःख तो है - लेकिन उस दुःख की निवृत्ति भी हो सकती है। उसका भी मार्ग तथागत बुद्ध ने बताया है । तथागत बुद्ध ने सभी को निर्वाण प्राप्त करने में जो मार्ग है वह सभी के लिए खुला कर दिया है। बुद्ध के धर्म का पालन करने से मनुष्य जीवन में दुःख का सर्वनाश हो सकता है। सभी संसार सुख और चैन से अपना जीवन व्यतित कर सकते हैं।
बुद्ध के धर्म उपदेश में तत्वज्ञान एवं उसे प्राप्त करने के साधन दोनों का ही उल्लेख प्राप्त होता है उन्होंने मनुष्य जीवन को विश्लेषित करते हुए चार आर्य सत्य की स्थापना की । व्यावहारिक दृष्टिकोण बौद्ध धर्म की उच्चतम विशेषता रही है बुद्ध ने अपने धर्म उपदेश में सृष्टि के उद्भव और विकास के बारे गम्भीर विवेचन कभी नहीं किया बल्कि एक कुशल वैद्य की भाँति भवरोग से पीड़ित प्राणियों को उनके योग का स्वरूप, उसका कारण एवं उसके निवारण के उपाय का विस्तार से विवेचन किया । तथागत बुद्ध की लोकप्रियता दिन - ब- दिन बढ़ती ही रही क्योंकि बुद्ध के समय में और धर्म प्रवर्तक मौजूद