Book Title: Indian Society for Buddhist Studies Author(s): Prachya Vidyapeeth Publisher: Prachya VidyapeethPage 35
________________ (20) वाले, सत्य-निष्ठा का पालन करने वाले, गुरु-जन का सम्मान करने वाले, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम एवं करूणा का भाव रखने वाले होंगे वे कुल, समाज, देश इत्यादि उतनी ही उन्नति करेगा, भारतीय दर्शन की दो धार्मिक परम्पराओंबौद्ध एवं जैन ने व्यक्तित्व निर्माण के लिए मार्ग सुझाया है जिसका अगर किसी भी व्यक्ति द्वारा सच्चे व साफ मन से अनुसरण किया जाए तो सम्वतः एक सदाचारी व्यक्तित्व के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। बौद्ध धर्म में जहां पंचशील का मार्ग सुझाया गया है वहीं जैन धर्म में पंच महाव्रत के अनुपालन की बात कही गई है। पंचशील के पांच सार्वभौम नियम इस प्रकार है—पाणातिपाता वेरमणी, अदिन्नादाना वेरमणी, अब्रह्मचरिया वेरमणी (गृहस्थों के लिए कामेसुमिच्छाचारा वेरमणी), मुसावादा वेरमणी तथा सुरामेरेय्यमज्जप्पमादाट्ठाना वेरमणी । इन्हीं पंचशील के समकक्ष जैन धर्म के पंच महाव्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, त्याग व ब्रह्मचर्य हैं। जो व्यक्ति इनका पालन करता है, उसका आचरण पवित्र माना जाता है प्रस्तुत शोध पत्र में बुद्ध एवं महावीर द्वारा सुझाए गए इन दोनों मार्गों की तुलनात्मक विवेचना की जाएगी। ***** बौद्ध धर्म की विशेषता : मनुष्य जीवन की यथार्थता अशोक पांडुरंग सरोदे, औरंगाबाद बौद्ध धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है। मनुष्य जीवन के यथार्थ के साक्षात्कार में बौद्ध धर्म एवं दर्शन का अमूल्य योगदान रहा है। भगवान बुद्ध स्वयं संसार की दुःखमयता का अनुभव कर शान्ति की खोज में घर से परिव्रजित हुए थे। सिद्धार्थ गौतम को सात साल के दीर्घ तपस्या के पश्चात् उन्हे संबोधि उपलब्ध हुई । तथागत बुद्ध ने शोकाकुल लोक के अवलोकन से द्रवित होकर संबोधि से प्राप्त धर्म की देशना से लोकप्रसार का दायित्व बताया था । उनके धर्म की देशना मात्र बौद्धिक संक्रमण काPage Navigation
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