Book Title: Indian Society for Buddhist Studies
Author(s): Prachya Vidyapeeth
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 24
________________ (9) एवं जैन ग्रंथों से प्राप्त होती है। अनेक जातक कथाओं में बुद्ध को पशु पालक एवं कृषक के रूप में बतलाया गया है, कुछ में बुद्ध को हस्तिपालक, सारथि आदि रूपों में वर्णित किया गया है।इन जातक कथाओं में प्राचीन भारतीय पशुपालकों द्वारा पशुओं को पालने की विधिः भार ढोने वाले पशुः युद्ध में प्रयुक्त होने वाले पशुः भेड़-बकरी आदि पशुओं के ऊन एवं उनका मांस भक्षणः कुत्तों की स्वामिभक्ति तथा प्राचीन भारतीय कृषकों के जीवन की अनेक अनुभूतियों यथा हर्ष, विषाद, रीतिरिवाज तथा उनकी मायताओं आदि के विषय में प्रसंग वश उल्लेख मिलता है। ___ भगवान बुद्ध ने तो यहाँ तक कहा है कि माता-पिता तथा रिश्तेदारों की भाँति पशु भी हमारे मित्र है। सुत्तनिपात में कहा गया है कि पशुओ का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि वे लोगों को अन्न, बल, सौन्दर्य और सुख देते है। दीद्य निकाय में पशुपालकों, कृष को, एवं व्यापरियों कि सहायता करने पर बल दिया गया है। . दुग्ध उद्योग कृषि का एक महत्त्वपूर्ण अंग था, जिससे एक खास वर्ग के लोग अपना जीवन यापन करते थे। अंगुत्तर निकाय तथा मज्झिम निकाय में गोपालक के ग्यारह गुणों का वर्णन दिया गया है। विनय पिटक, महावग्ग, चुल्लवग्ग, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय एवं खुद्दक निकाय आदि ग्रंथों में भी पशु पालन से सम्बंधित प्रसंग व शविवरण मिलता है। प्रस्तुत शोध पत्र में उपयुक्त विषय का विस्तारपूर्वक उल्लेख करने का प्रयास किया जाएगा। ***** बुद्धकालीन समाज में वस्त्राभूषण हिमाद्रि, वाराणसी नगर के उत्कर्ष के इस युग में नागरिकों के पहनने ओढ़ने के शौक में पर्याप्त वृद्धि हुई जिसमें व्यवसाय जैसे कताई, बुनाई, रंगाई, सिलाई, इत्यादि को पनपने के काफी अवसर मिले। पालि-पिटक तथा पाणिनीय अष्टाध्यायी में

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