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के अभ्यास से मानसिक क्लेशों जैसे घृणा, प्रमाद, आसक्ति, मिथ्यादृष्टि आदि से बचा जा सकता है।
मनुष्य के जन्म के साथ ही मन का भी जन्म है, मन के साथ समस्याओं का भी जन्म होता है। प्रत्येक देशकाल, समाज में और व्यक्ति भेद के अनुसार मन की समस्याओं में भेद है, समस्याएँ बदलती रहती है फिर भी धम्मपद सभी मनुष्यों की समस्याओं का ऐसा समाधान प्रस्तुत करता है जो सभी के लिए उपयोगी है।
वर्तमान समाज की मानसिक समस्याएँ व्यक्ति व परिवेश के अनुसार भिन्न भिन्न हैं जहाँ हम अतिभौतिकता की और बढ़ते जा रहे हैं समस्याएँ भी बढ़ती जा रही है। व्यक्ति की समस्याएँ, परिवार की समस्याएँ और समाज की समस्याओं के तीन आधार हैं। समस्याएँ एक मन की है धम्मपद के यमक वग्ग में कहा गया है कि सभी धम्म मनः प्रधान मनोयोग हैं। हम सभी मन से बंधे है क्योंकि मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है और जिस दिन मन - के बंधन से मनुष्य मुक्त होगा वही उसकी असली मुक्ति होगी। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने मन पर नियंत्रण रखें और धम्मपद यह कहता है कि जीवन को निर्मल, प्रसन्न रखना, मन को शांत रखना चाहिए, तृष्णाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। दुख का अंत असम्भव नही है चाहे कठिन हो । मनुष्य अपने को विशेष प्रकार से शिक्षित करें इसके लिए विपश्यना साधना अति उत्तम है। इस विधि से मनुष्य अपने भीतर संवेदनाओं को देखकर अपने बारे में सच्चाई जानने की अन्तर्दृष्टि का क्रमिक विकास कर सकता है इस प्रकार बौद्धमत आशावादी प्रतीत होता है इस आचरण को प्रतिदिन के व्यवहार ढालने पर वह एक दिनचर्या फिर आदत और अन्ततः आपका स्वभाव बन जाएगा इसके लिये स्वयं का प्रयत्न अति आवश्यक है। प्रज्ञावान व्यक्ति तुच्छ चिजों को नहीं देखता वह समग्रता से देखता है। इस लिए कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो कुछ पल बिना तनाव के विचार करें क्या यह सहीं है ?
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