Book Title: Indian Society for Buddhist Studies Author(s): Prachya Vidyapeeth Publisher: Prachya VidyapeethPage 26
________________ (11) मुक्तामणि जड़ित अलंकारों का निर्माण कर कलाप्रिय नागरिकों कि शौक कि पूर्ति करते थे। वे अंगूठी, कुंडल, गले का हार, सुवर्णमाला या कंचनमाला, कर्णफूल, कंगन, चूड़ी, मेखला इत्यादि अनेक प्रकार के आभूषण बनाते थे जिनका तत्कालीन समाज में प्रचलन था। सोने तथा चाँदी के अतिरिक्त मुक्ता, मणि, वैदूर्य, भद्रक, शंख, शिला, प्रवाल, लोहिन्तक तथा मसारगल्ल का भी उपयोग आभूषण निर्माण के लिए किया जाता था । मणियों को प्रायः सोने चाँदी के आभूषणों से जड़ा जाता था। ***** पैगोडाः इतिहास व बौद्ध धर्म में महत्व हौशला प्रसाद, दिल्ली बौद्धधर्म में पैगोडा का विशेष महत्व है। पैगोडा को संस्कृत में चैत्य भी - कहा जाता है। विभिन्न देशों के राजाओं ने अपने शासनकाल में पैगोडा का प्रयोग बौद्धधर्म की विकास के लिए किया। इसका उत्तम उदहारण सम्राट अशोक थे जिन्होंने 84,000 स्तूप का निर्माण करवाया था। मेरा यह लघु शोध पत्र पैगोडा व उसके द्वारा बौद्ध धर्म में हुये विकास और विस्तार पर आधारित है। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो पैगोडा एक मंजिलाकर मीनार, जिसमे कई ओरी होती है। पैगोडा आमतौर पर चीनी, जापान, नेपाल, वियतनाम, म्यांमार, श्रीलंका, कोरिया और एशिया के अन्य हिस्सों में देखने को मिलते है। कुछ पैगोडा ताओ समाज के पूजा पाठ के प्रयोग में लिए जाते है पर अधिकतर पैगोडा बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा स्थापित किये गए है। पैगोडा का धार्मिक रूप से बहुत महत्व है जिसका कारण इसके इतिहास में छुपा है। आधुनिक पैगोडा का इतिहास प्राचीन भारत के स्तूप से उत्पन्न हुआ था। स्तूप एक गुम्बदनुमा आकर की स्मारक है जिसमे पवित्र अवशेषों को सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। इसकी शुरुआत 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध की मृत्यु के साथ शुरू हुई थी ।Page Navigation
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