Book Title: Indian Society for Buddhist Studies
Author(s): Prachya Vidyapeeth
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 30
________________ (15) भारतीय संस्कृति को प्रदान किया वह सब पालि में है, तथा भगवान महावीर ने प्राकृत के माध्यम से भारतीय जनमानस को आप्लावित किया। पालि और प्राकृत भाषाएँ एक ही क्षेत्र और काल की रचना है। भगवान बुद्ध के उपदेश पालि भाषा में उपलब्ध है, तो भगवान महावीर के प्राकृत भाषा में। दोनों ही महापुरूषो के उपदेश मौखिक ही रहे। कालान्तर में लिपिबद्ध हुए। बुद्ध पालि। साहित्य को त्रिपिटक के नाम से जाना जाता है, तो जैन आगम साहित्य प्राकृत में रचे गए है। दोनों भाषाओं में कौन सी ऐसी विशेषताएँ थी जिसके कारण दोनों महापुरुषों ने इनको अपने उपदेश एवं विचार का माध्यम बनाया। वस्तु दोनों भाषाएँ जनसाधारण की बोल-चाल की भाषा थी जो उस समय प्रचलित थी। क्षेत्र व काल एक होने के कारण दोनों भाषाओं में विभेद की अपेक्षा समरूपता अधिक है। कभी-कभी तो प्राकृत की भाषा को पढ़ते समय हमें पालि का बोध होने लगता है और पालि के अध्ययन में प्राकृत भाषा से समरूपता दिखाई देती है। समरूपता होने के साथ-साथ कहीं-कहीं स्थानों पर व्याकरण की दृष्टि से अनेक विभेद भी मिलते है। स्वर और व्यजंन भी दोनों में समान नहीं है, फिर भी पालि में प्रकृति की अपेक्षा कुछ स्वर व व्यंजन अधिक होने से दोनों की समरूपता को भुलाया नहीं जा सकता है। दोनों में विषम वर्ग के व्यजंन संधि प्रायः स्ववर्गीय व्यजंन हो जाता है, जैसे - धर्म का धम्म, कर्म का कर्म और आत्म का अत्त। किन्तु इसका अपवाद भी पाया जाता है, जैसे पालि में अनित्य का अनित्य ही रहता है. किन्तु प्राकृत में अनिच्च बनता है। दोनों भाषाओं में श,ष के स्थान पर दन्त 'स' ही होता है, जैसे कषाय का कसाय, आश्रव का आसव। चित्त आदि शब्द दोनों भाषाओं में समान रूप ही प्रयुक्त होते है, किन्तु कुछ स्थानों पर पालि की प्राकृत से भिन्नता भी है, जैसे प्राकृत में पाप शब्द का रूप पाव बनता है, जबकि पालि में पाप ही रहता है। मार्ग शब्द पालि में यथावत रहता है जबकि प्रकृति में उसका मग्ग हो जाता है, किन्तु सग्रह शब्द का पालि और प्राकृत दोनों में संग्रह रूप मिलता है। इसी तरह प्रकृति में ब्राह्मण शब्द का बणमन जबकि पालि में ब्राह्मण रूप यथावत मिलता है। जहां प्राकृत मुख्यतः मुख शुदा के आधार पर चलती है, वहा पालि में मुख सुविधा प्रधान तो है, किन्तु सर्वत्र मुखळसुदा का प्रयोग नही किया जाता है।

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