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द्विसंधान या राघवपाण्डवीय महाकाव्य-१ इसके रचयिता धनंजय हैं । इसमें १८ सर्ग हैं । इसके प्रत्येक पद्य से दो अर्थ प्रकट होते हैं । प्रत्येक पद के एक अर्थ में रामायण और दूसरे अर्थ में महाभारत की कथा का वर्णन किया गया है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो एक अर्थ में राम तथा द्वितीय अर्थ में कृष्ण-कथा का सृजन हुआ है । ध्वन्यालोक के रचयिता आनन्दवर्धन ने निम्न शब्दों में इसकी प्रशंसा की है
___ "द्विसंधाने निपुणतां सतां चक्रे धनंजयः ।
यथा जातं फलं तस्य, सतां चक्रे धनंजयः ॥" प्रद्युम्न-चरित-२ श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के जीवन-चरित पर आधारित यह संस्कृत खण्ड काव्य है । इसके रचयिता महासेनाचार्य हैं । स्व० नाथूराम प्रेमी के अभिमतानुसार इसका रचनाकाल वि.सं. १०३१-१०६६ है । इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के पराक्रम का वर्णन है । प्रद्युम्न-चरित नाम से अन्य लेखकों के भी अनेक ग्रन्थ हैं । प्रद्युम्न चरित के अनुसार कालान्तर मे हिन्दी जैन-साहित्य में भी खण्ड काव्य प्रस्तुत किए गए । यथा संघास का प्रद्युम्न-चरित तथा देवेन्द्र कीर्ति का प्रद्युम्न-प्रबन्ध आदि ।
भट्टारक सकलकीर्ति ने भी जिनसेन और गुणभद्र के महापुराण आदि के अनुसार ही हरिवंश पुराण और प्रद्युम्न-चरित्र लिखे हैं । जयपुर के विभिन्न ग्रन्थ-भण्डारों में इन ग्रन्थों की कई हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हैं । पाण्डव पुराण-४ इसके लेखक भण्डारक शुभचन्द्र हैं । पाण्डव पुराण की कथा हरिवंश पुराण में वर्णित पाण्डवों की कथा पर आधारित है।
भट्टारक श्री भूषण की पाण्डव पुराण भी सुन्दर रचना है । इन्हीं का लिखा हुआ एक हरिवंश पुराण भी मिलता है, जिसका रचनाकाल वि.स. १६७५ है । महाकवि वाग्भट्ट का नेमिनिर्वाण काव्य, ब्रह्मचारी नेमिदत्त का नेमिनाथ पुराण (वि.सं. १५७५ के लगभग) भट्टारक धर्मकीर्ति का हरिवंश पुराण (वि.स. १६७१) भी कृष्ण संबंधी सुन्दर कृतियाँ हैं ।
श्वेताम्बर परम्परा में त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र एक महत्त्वपूर्ण रचना १- लेखक श्री धनंजय २- पं. नाथूराम प्रेमी द्वारा संपादित और हिन्दी ग्रन्थ कार्यालय-बम्बई द्वारा प्रकाशित । ३- जिनवाणी - जुलाई १९६९, पृ० २६ । ४- प्रो० ए० एन० उपाध्ये द्वारा संपादित होकर सन् १९५४ में जैन संस्कृति संरक्षक संघ
सोलापुर से प्रकाशित हुआ है। ५- (क) जैन साहित्य और इतिहास - नाथूराम प्रेमी, पृ० ३८३-८४ ।
(ख) संस्कृत साहित्य का इतिहास - वाचस्पति गैरोला - पृ० ३६१-६२ ।
28 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास