Book Title: Hindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 175
________________ जितने जैन साहित्य का हमने अध्ययन किया, उतने से कृष्ण चरित्र का कथा - स्वरूप प्रतिपन्न होता है ? वैदिक साहित्य से अपभ्रंश साहित्य तक कृष्ण के स्वरूप का वर्णन भिन्न-भिन्न विद्वानों तथा कवियों ने किया है । इस परिचय से हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण के स्वरूप - विकास की पृष्ठभूमि स्पष्ट हो जाती है और हम देखते हैं कि भारतीय संस्कृति की जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों धाराओं ने कर्मयोगी श्रीकृष्ण के जीवन को विस्तार और संक्षेप में युगानुकूल भाषा में चित्रित किया है । जहाँ वैष्णव धर्म के अनुसार कृष्ण को विष्णु का पूर्ण अवतार मान कर श्रद्धा और भक्ति से कृष्ण का स्तवन किया है, कहाँ जैन परम्परा ने भावी तीर्थंकर और श्लाधनीय पुरुष मानकर उनका गुणानुवाद किया है तथा बौद्ध परम्परा ने भी उन्हें बुद्ध का अवतार मानकर उनकी उपासना की है । वैदिक साहित्य से लेकर अपभ्रंश साहित्य तक सभी विद्वानों ने कृष्ण को पराक्रमी, महावीर तथा एक महापुरुष माना है । वे लोक - रक्षक, धर्म व नीति के संस्थापक और आदर्श पुरुष हैं । I - जहाँ तक कृष्ण सम्बन्धी जैन साहित्य का प्रश्न है, यह मुख्यतः प्रबन्धबद्ध है तथा बड़े परिमाण में उपलब्ध है । एक और जहाँ जैनेतर हिन्दी साहित्य की लम्बी कालावधि में कृष्ण सम्बन्धी अधिकांश साहित्य मुक्तक रूप में लिखा गया, वहाँ जैन साहित्य की परम्परा में प्रारम्भ से ही कृष्ण चरित प्रबन्ध काव्य का विषय रहा । इन प्रबन्ध काव्यों में कृष्ण की वीरता, पराक्रम तथा द्वारकाधीश रूप में उनका वासुदेव राजा का रूप ही मुख्य वर्ण्य विषय रहा है । जबकि हिन्दी के मुक्तक साहित्य में कृष्ण के कालान्तर में विकसित गोकुल - प्रवास की कथा व उनका गोपाल, गोपीजन - प्रिय रूप ही वर्णन का मुख्य आधार रहा । इस प्रकार हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण के अपेक्षाकृत प्राचीन व ऐतिहासिक स्वरूप का वर्णन हुआ है । हिन्दी के पूर्व के भाषा रूप - अपभ्रंश तथा आदिकालिक हिन्दी में कृष्ण-सम्बन्धी रचनाएँ, प्रमुखतः जैन - साहित्यकारों की ही उपलब्ध हैं । इनमें स्वयंभू, पुष्पदंत जैसे अपभ्रंश - काव्य के अद्वितिय महाकवियों की विशालकाय पौराणिक रचनाएँ हैं तो आदिकालिक हिन्दी में रचित फागु, रास, बेलिशीर्षक अविवादास्पद रचनाओं में से अनेक जैन - साहित्यकारों की कृष्ण - चरित विषयक रचनाएँ हैं । ये सभी रचनाएँ तत्कालीन भाषा - रूप तथा काव्य - रूप के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखती हैं । जैन कवि मुख्यतः परम्परावादी हैं । इस कारण कृष्ण चरित के अति प्राचीन ऐतिहासिक स्वरूप को अक्षुण्ण रखने में वे सफल रहे हैं । हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 161

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