Book Title: Hindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 165
________________ कवि आलम की प्रेमानुभूति भी व्यक्तिगत है । इनके कृष्ण भी रस नायक तथा रसात्मक हैं । कृष्ण गोपीवल्लभ हैं और अनुकूल नायक भी । आलम में कृष्ण का भक्त-कल्याणकारी रूप भी प्रस्तुत किया है । धनानन्द के कृष्ण शान्त भक्ति के आराध्य कृष्ण हैं । कृष्ण के चरण परम सुख की सीमा और दुःख को दूर करने वाले हैं । वे प्यास को दूर करने वाले रस-निवास आनन्द के धन हैं । घनानन्द जी मुख्य रूप से मधुरा भक्ति तथा स्वच्छन्द प्रेम के कवि हैं । घनानन्द के कृष्ण राधा के पति हैं और राधा पत्नी । उन्होंने कृष्ण को 'दुल्हा तथा बना बनाया है और राधा को बनी” या दुलहिन । अतः कृष्ण राधा के स्वकीय पति हैं किन्तु राधा-कृष्ण के परस्पर प्रेम में परकीया की सी उन्मद भाव-धारा बहती है । यह धनानन्द का अपना भाव है । राधा महाभाव की आश्रय हैं तथा श्रीकृष्ण उसके आलंबन । घनानन्द के कृष्ण प्रेम-स्वरूप हैं । राधा और कृष्ण का प्रेम मानवीय उच्च स्तर का है । वे प्रेम के अपार सागर में एकरस होकर सदा निमग्न रहा करते हैं। उनमें सूर और मीरा की सी तन्मयता, तुलसी की सी उदारता, विद्यापति का सा पद-लालित्य तथा बिहारी का सा अर्थ गौरव है । वे प्रेममार्ग के धीर पथिक थे तथा उनके कृष्ण प्रेम-स्वरूप । कवि बोधा ने कृष्ण को साक्षात् प्रेम-स्वरूप माना है । कृष्ण प्रेमस्वरूप हैं इसीलिए बोधा के प्रिय हैं, जो प्रिय हैं वे ही भगवान हैं, अतः श्रीकृष्ण भगवान है । तात्पर्य यह कि बोधा के कृष्ण पूर्ण रसात्मक हैं और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं । इसी परम्परा में ठाकुर भी रीतिमुक्त कवि है । उन्होंने कृष्ण की मधुर लीलाओं का, उनके रूप-सौन्दर्य का सीधा सादा वर्णन किया है । उनके अपने ऐश्वर्य में भगवान और प्रेम में मानव है । मध्यकालीन हिन्दी साहित्य में वैष्णव धर्म परम्परा से संबंधित विविध सम्प्रदायों एवं रीतिकालीन कृष्ण के स्वरूप-विकास का अनुशीलन प्रस्तुत करने के पश्चात् अब हम उसी युग-विशेष में जैन कृष्ण-साहित्य में उनके स्वस्थ विकास का अध्ययन प्रस्तुत कर रहे है। जैन लेखकों ने मध्यकाल में प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश भाषा में ही नहीं, हिन्दी भाषा में भी विपुल कृष्ण साहित्य की रचना की । इस भाषा के लेखक श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा के साहित्यकार रहे हैं । ज्यादातर लेखकों ने अपनी रचना का आधार आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण व गुणभद्र कृत उत्तर पुराण को ही बनाया है । इन कृतियों में कुछ हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 151

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