Book Title: Hindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 164
________________ हैं । बिहारी ने कृष्ण को राधा के पैर पलोटने वाले कहकर चित्रित किया है । रसखान ने देव्यो दुरयो वह कुंज कुटिर में बेठो पलोटन राधिका पायन कहकर कृष्ण का राधा के प्रति अतिशय प्रेमभाव प्रदर्शित किया है तो बिहारी ने मान करने पर कृष्ण का उनके चरणों पर लोटने का संकेत किया है । रीतिकाल में कृष्ण का रसिक अथवा रसात्मक रूप ही अधिक चिंत्रित हुआ है । नायक के विविध रूपों की चर्चा कृष्ण के श्रृंगार प्रसंग में हुई है । यद्यपि कृष्ण के बाल रूप की चर्चा भी रीतिकाल के कवियों ने यदाकदा की है, किन्तु विषय का मुख्य स्वर श्रृंगार ही है । रीतिकालीन कवियों का कृष्ण विनयी, क्षमावान, करुण, सत्यवान, नवयौवन सम्पन्न एवं परिहास विशारद है । कृष्ण का व्यक्तित्व माधुर्य से मुक्त है ।। जहाँ भक्त कवियों ने श्रीकृष्ण के श्रृंगार चित्रण पर बहुत अधिक बल दिया है और क्षण-क्षण उनकी नयनाभिराम झाँकी की चर्चा की है वहाँ रीतिबद्ध कवियों ने कृष्ण के श्रृंगार से एक प्रकार से दृष्टि हटा ली है तथा नारी सौन्दर्य के चित्रण में अपनी संपूर्ण काव्य-प्रतिभा का अपव्यय कर डाला है । भगवान श्रीकृष्ण के कमनीय रूप को कामुक रूप चित्रित करते हुए इन कवियों ने विलासप्रियता का परिचय दिया है। (ड) रीतिमुक्त कवियों के साहित्य में कृष्ण का स्वरूप : जिस स्वच्छन्द प्रेमधारा का प्रवर्तन रसखान ने किया, वह हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल तक चली । रसखान तथा आलम भक्तिकाल के अंतिम चरण के कवि हैं । अतः वे रीतिकाल की परिधि में नहीं आते । रीतिकाल की परिधिमें आने वाले ये स्वच्छन्द काव्यधारा वाले कवि घनानन्द, बोधा, और ठाकुर हैं । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीने इन्हें रीतिमुक्त कवि कहा है। वस्तुतः ये कवि अपनी स्वच्छन्दता के लिए किसी परंपरा में नहीं आते । इसीलिए इनकी चर्चा पृथक रूप से की जा रही है । रसखान ने कृष्ण को प्रभु नहीं किन्तु अपना प्रिय माना । किन्तु उन्होंने परब्रह्म का स्वरूप भुलाया नहीं । उनके कृष्ण गोधन चरानेवाले तथा वेणु बजाने वाले होते हुए भी शेष, गनेश, महेश, दिनेश और सुरेश के द्वारा गेय हैं । रसखान के कृष्ण मानव अधिक है, अलौकिक कम । परम ज्योति ही सीधी कृष्ण रूप में अवतरित हुई । उसकी अनुभूति और उसके कार्य सब मानवीय है । इसीलिए नन्दनन्दन ब्रजराज कृष्ण अवतारी हैं । १- हिन्दी साहित्यः पृ० ३४१ 150 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास

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