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उसने श्रीकृष्ण के आदेश का पालन किया तथा अपनी पलियों, पुत्रों और बन्धु-बान्धवों के साथ रमणक द्वीप की, जो समुद्र में सर्पो के रहने का एक स्थान है, यात्रा की । श्रीकृष्ण की कृपा से यमुनाजी का जल विषहीन ही नहीं, बल्कि उसी समय अमृत के समान मधुर हो गया । (घ) कंस वध :___ “त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र भव-भावना एवम् हरिवंशपुराण के अनुसार कंसके वध की कथा इस प्रकार मिलती है । पहले कंस की आज्ञा से प्रथम अनेक मल्ल परस्पर युद्ध करने लगे । एकदूसरे को पराजित करने के लिए अनेक दाँवपेच दिखलाते हुए जन-समूह का मनोरंजन करने लगे । अन्त में चाणूर मल्ल खड़ा हुआ | उसने सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकारा । किन्तु कोई भी राजा उससे युद्ध करने को प्रस्तुत नहीं हुआ । चाणूर ने दुबारा कहा-क्या कोई भी मेरे साथ मल्ल युद्ध करने को तैयार नहीं है ? यह ललकार सुनते ही श्रीकृष्ण अखाड़े में उतर पड़े । लोगों ने आवाज़ लगाई-कहाँ चाणूर और कहाँ दुधमुँहा बच्चा ? लोग इस विषम युद्ध का विरोध करने लगे। किन्तु उसी समय कंस गरजा-इन्हें यहाँ किसने बुलाया था। मेरे यहाँ आए ही क्यों ? अब तो यह कुश्ती होगी ही।
कृष्णने लोगों से कहा-आप घबराइये नहीं । देखिए, अभी इसकी भुजाओं का मद उतारता हूँ । इतने में दूसरा मल्ल मुष्टिक भी अखाड़े में कूद पड़ा । तब उससे लड़ने के लिए बलराम अखाड़े में उतरे । दोनों जोड़ियों में भयंकर मल्लयुद्ध हुआ । कृष्ण और बलराम ने क्रमशः चाणूर
और मुष्टिक को तृण के ढेर की तरह उछालकर एक तरफ फेंक दिया । चाणूर उठा । उसने श्रीकृष्ण के उरुस्थल पर जोर से मुष्टि का प्रहार किया । मुष्टि के प्रहार से श्रीकृष्ण बेहोश हो गये । कृष्ण को बेहोश देखकर कंस प्रसन्न हुआ । उसने आँख से चाणूर को संकेत किया कि इसे मार डाले | वह श्रीकृष्ण को मारने के लिए उद्यत हुआ त्यों ही बलदेव ने उस पर ऐसा जोर से प्रहार किया कि चाणूर दूर जाकर गिर १- श्रीमदभागवत : श्लोक ६७, पृ. २३१-२४१ २- (क) त्रिषष्टि. ८/५/२७४-२८३ ।
(ख) भव-भावना २४३५-२४४२, पृ. १६३
(ग) हरिवंशपुराण (हिन्दी) - खुशालचन्द्र काला - पृ.४०, दोह्य १८१-१८५ ३- (क) त्रिषष्टि. ८/५/२८४-२९५ ।
(ख) भव-भावना २४४३-२४५६ । (ग) हरिवंशपुराण में कृष्ण के बेह्येश होने का वर्णन नहीं है।
56 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास