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कृति के उक्त वीर स्वरूप वर्णन के अतिरिक्त प्रस्तुत कृति में कृष्ण के दूध-दही खाने-फैलाने का भी वर्णन हुआ है । यथा - “आपुन खाई, ग्वाल धर देई,
घर को क्षार विराणो लेई । घर-घर वासण फोड़े जाई ।
दूध-दही सब लेहि छिड़ाई ।। (२) खुशालचन्द काला कृत हरिवंश पुराण एवं उत्तर पुराण:२
__ कृष्ण चरित से संबंधित उक्त दोनों हिन्दी काव्यकृतियों की हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ जैन ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध हैं । ये दोनों कृतियाँ क्रमशः जिनसेनाचार्य कृत हरिवंश पुराण (संस्कृत) तथा गुणभद्राचार्य कृत उत्तर पुराण (संस्कृत) की शैली पर रचित हैं ।
.. हरिवंश पुराण की रचना संवत १७८० (सन १७२३) तथा उत्तर पुराण की रचना संवत् १७९९ (सन् १७४२) में पूर्ण हुई-ऐसा उल्लेख स्वयं ग्रन्थकर्ता ने ग्रंथों की समाप्ति पर किया है ।
हरिवंश पुराण में कवि खुशालचन्द अपनी कथा की परम्परा इस प्रकार कहते हैं -
प्रथम भगवान महावीर ने यह कथा गौतम स्वामी को कही, गौतम ने सुधर्मास्वामी को कही, तत्पश्चात् सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को कही । इसके पश्चात् जम्बु स्वामी ने विद्युतचर को कही, विद्युतचर ने रविशेणाचार्य को कही । उसके पश्चात् इस कथा को जिनसेनाचार्य ने कहा और उन्हीं की परंपरा के अनुसार ब्रह्म जिनदास ने यह लिखा । उसी जिनदास के कथानक को भाषा के रूप में खुशालचन्द ने व्यक्त किया ।
इन ग्रन्थों के रचयिता श्री खुशालचन्द काला खण्डेलवाल जाति के दिगम्बर जैन थे । इनका जन्म टोड़ा (जयपुर) नामक ग्राम में हुआ था। बाद में वे सांगानेर (जयपुर) में आकर बस गये थे । इनका शेष जीवन १- हरिवंश पुराण (आगरा प्रति) १७०७-१७०८ । २- हरिवंश पुराण : हस्तलिखित प्रति उपलब्ध - आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर ।
खण्डेलवाल दि. जैन मंदिर, उदयपुर; उत्तर पुराण : बाबा दुली चन्द शास्त्र भण्डार, जयपुर । तथा सौगानियों का मंदिर,
करोली (राज.) ३- हरिवंश पुराण : हस्तलिखित प्रति, दि. जैन मंदिर ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास • 89