________________
तैयारी के साथ आक्रमण किया । दोनों ओर की सेनाओं का घोर युद्ध हुआ । अन्त में श्रीकृष्णने चक्ररत्न से जरासंध का सिर काटकर उसे निष्प्राण कर दिया । इस अवसर पर सन्तुष्ट हुए देवों ने घोषणा की कि वसुदेव का पुत्र कृष्ण नौवाँ वासुदेव हुआ है और उसने चक्रधारी होकर द्वेष रखनेवाले प्रतिशत्रु जरासंध को उसी के चक्र से युद्धमें मार डाला है । तत्पश्चात् राजाओं ने अतिशय प्रसिद्ध कृष्ण तथा बलदेव का अर्ध भरतक्षेत्र के स्वामित्व पद पर अभिषिक्त किया । तत्पश्चात् वे दिग्विजय के लिए निकल पड़े । मागध देवों को हराकर उन्होंने विजयार्ध-स्थित म्लेच्छ राजाओं आदि को विजित किया । तत्पश्चात् वे नारायण रूपमें प्रसिद्ध हुए ।
एक बार श्रीकृष्ण की सभा में उनके पितृव्य समुद्रविजय के पुत्र नेमिकुमार गये । प्रसंगवश दोनों भाईयों के बल की परीक्षा हुई और कृष्ण नेमिनाथ के बल से परास्त हो गये । उन्हें शंका हुई कि कहीं राज्य न चला जाय । नेमिनाथ के विवाह के लिये उनकी स्वीकृति पाकर श्रीकृष्ण ने भोजकवंशियों की कुमारी राजमती (राजुला) को उनकी वधू के रूप में निश्चित किया । किन्तु राजमार्ग पर जाते हुए नेमिनाथ ने जब विवाहोत्सव में वध के लिए लाए गए नाना जाति के पशु देखे तो उनका हृदय प्राणीदया से सराबोर हो गया । अवधिज्ञान से उन्हें इसके कारण का पता लग गया । वैराग्य धारण कर वे सहस्राम् वन में तपश्चर्या में लीन हो गए । आश्विन शुक्ला, चित्रा नक्षत्र में उन्हें केवल ज्ञान हुआ । अन्त में वे इरावती में आकर खेतक गिरि के उद्यान में विराजमान हो गए । एक-एक करके कृष्ण, देवकी, बलदेव, सत्यभामा, आदि ने उनसे प्रश्न किए और उन्होंने सबके भवान्तरों का वर्णन किया ।
बलदेव ने स्वामी नेमिनाथ से कृष्ण की आयु के बारे में पूछा । नेमिनाथ ने बताया कि १२ वर्ष बाद मदिरा निमित्त से द्वैपायन मुनि के द्वारा द्वारावती का नाश हो जाएगा। जरत्कुमार कृष्ण की मृत्यु का कारण बनेगा ।
कृष्ण के प्रयत्न करने पर भी होनहार होकर रहा और द्वैपायन मुनि के क्रोध से द्वारावती भस्मीभत हो गई । कष्ण और बलदेव भ्रमण करते-करते कौशाम्ब वन में पहुँचे । वहाँ कृष्ण को प्यास लगी । बलदेव पानी के लिए गये और कृष्ण पीताम्बर ओढ़कर लेट गए । इसी समय धोखे से जरत्कुमार के बाण से उनके पदतल में चोट लगी और उनकी मृत्यु हो गई । जरत्कुमार से यादव वंश की परम्परा चली ।
50 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास