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को गिरा दिया । छठवीं वृषभ रूपधारी देवी की गरदन मोड़कर उसको भगा दिया । और सातवीं देवी जब कठोर वर्षा करने लगी तब कृष्ण ने गोवर्धन गिरि ऊँचा उठाकर सारे गोकुल की रक्षा की ।
कृष्ण के पराक्रमों की बात सुनकर उनको देखने के लिए देवकी बलराम को साथ लेकर गोपूजन को निमित्त बनाकर गोकुल आई और गोपवेश कृष्ण को निहारकर वह आनंदित हुई और मथुरा वापस आई । बलराम प्रतिदिन कृष्ण को धनुर्विद्या और अन्य कलाओं की शिक्षा देने के लिए मथुरा से आते थे।
बालकृष्ण गोपाल-कन्याओं के साथ रास खेलते थे । गोप-कन्याएँ कृष्ण के स्पर्शसुख के लिए उत्सुक रहती थीं, किन्तु कृष्ण स्वयं निर्विकार थे । लोग कृष्ण की उपस्थिति में अत्यन्त सुख का और उनके वियोग में अत्यन्त दुःख का अनुभव करते थे ।
एक बार शंकित होकर कंस स्वंय कृष्ण को देखने के लिए गोकुल आया । यशोदा ने पहले से ही कृष्ण को दूर वन में कहीं भेज दिया । वहाँ पर भी कृष्णने ताण्डवी नामक पिशाची को मार भगाया एवं मण्डप बनाने के लिए शाल्मलि की लकड़ी के अत्यन्त भारी स्तम्भों को अकेले ही उठा लिया । इससे कृष्ण के सामर्थ्य के विषय में यशोदा निःशंक हो गई और कृष्ण को वापस वन से लौटा लिया।
मथुरा वापस आकर कंस ने शत्रु का पता लगाने के लिए ज्योतिषी के कहने पर ऐसी घोषणा कर दी कि जो मेरे पास रखी गई सिंहवाहिनी नागशय्या पर आरुढ़ हो सके, अजितंजय धनुष को चढ़ा सके एवम् पाँचजन्य शंख को फूंक सके उसको अपनी मनमानी चीज प्रदान की जाएगी। अनेक राजा यह कार्य सिद्ध करने में निष्फल हुए । एक बार जीवयशा का भाई भानु कृष्ण का बल देखकर उनको मथुरा ले गया और वहाँ कृष्ण ने तीनों पराक्रम सिद्ध किये । इससे कंस की शंका प्रबल हो गई । किन्तु बलराम ने शीघ्र ही कृष्ण को ब्रज भेज दिया ।
कृष्ण का विनाश करने के लिए कंस ने गोप लोगों को आदेश दिया कि यमुना के हृद में से कमल लाकर भेट करें । इस हद में भयंकर १- त्रिच० के अनुसार कृष्ण के पराक्रमों की बात फैलने से वसुदेव ने कृष्ण की सुरक्षा के
लिए बलराम को भी नन्द-यशोदा को सौंप दिया। उनसे कृष्ण ने विद्याकलाएँ सीखीं । २- त्रिच० के अनुसार जो शाङ्ग धनुष्य चढ़ा सके उसको अपनी बहिन सत्यभामा देने की
घोषणा कंस ने की । और इस कार्य के लिए कृष्ण को मथुरा ले जाने वाला कृष्ण का ही सौतेला भाई अनाधृष्टि था ।
46 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास