Book Title: Hindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 11
________________ उनकी ऋणी बनी रहूँ । डॉ बी.एस. अग्रवाल, श्री रूपेन्द्रकुमारजी पगारिया, डॉ. चंद्रा, डॉ. ओझा, डॉ. नागर आदि गुरुजनों की मैं कृतज्ञ हैं, जिन्होंने अपने बहुमूल्य विवेचन और सुझावों से मुझे प्रोत्साहित किया। . डॉ. महावीर कोटिया, आचार्य चन्द्रशेखर सूरिजी, आचार्य देवेन्द्र मुनि एवं अन्य अनेक विद्वानों एवं लेखकों की भी आभारी हूँ, जिनके साहित्य ने न केवल मेरे चिन्तन को दिशा-निर्देश दिया है वरन जैन ग्रन्थों के अनेक महत्त्वपूर्ण सन्दों को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध कराया है। उन गुरुजनों के प्रति, जिनके व्यक्तिगत स्नेह, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन ने मुझे इस कार्य में अभूतपूर्व सहयोग दिया हैं, यहाँ श्रद्धा प्रकट करना भी मेरा अनिवार्य कर्तव्य है । सौहार्द, सौजन्य एवं संयम की मूर्ति डॉ. भायाणी सा. की मैं अत्यन्त आभारी हूँ । अपने स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत कार्यों की चिंता नही करते हुए भी उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के अनेक अंशों को ध्यानपूर्वक पढा या सुना एवं यथावसर उसमें सुधार एवं संशोधन के लिए निर्देश भी दिया । मैं नहीं समझती हूँ कि केवल शाब्दिक आभार व्यक्त करने मात्र से मैं उनके प्रति अपने दायित्व से उऋण हो सकती हूँ। लेखनकार्य की व्यस्तता के अवसर पर मेरे पति तथा बच्चों का जो समय-समय पर सराहनीय सहयोग रहा है, उसके लिये मैं आभारी हूँ। इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने में पार्श्व प्रकाशन द्वारा जो सहयोग प्रदान किया गया उसके लिये भी मैं हृदय से आभारी हूँ। यह मेरा प्रथम प्रयास है । इस प्रयास में मेरा अपना कुछ भी नहीं है, सभी गुरुजनों का दिया हुआ है, इसमें मैं अपनी मौलिकता का भी क्या दावा करूँ ? मैंने तो अनेकानेक आचार्यो, विचारकों एवं लेखकों के शब्द एवं विचार-सुमनों का संचय कर माँ सरस्वती के समर्पण हेतु इस माला का ग्रथन किया है । जिसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ। डॉ. प्रीतम सिंघवी VI • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास

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