Book Title: Hindi Jain Kalpasutra
Author(s): Atmanand Jain Sabha
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ २ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उन्हें अचेलक कैसे कहा जा सकता है ? इस का समाधान यह है कि जो जीर्ण होता है वह कम होने के कारण वस्त्र रहित ही कहा जाता है। यह सब लोगों में प्रसिद्ध ही है । जैसे कोइ मनुष्य एक लंगोटी पहन कर नदी उतरा हो तो वह कहता है कि मैं नग्न होकर नदी उतरा हूँ। ऐसे ही वस्त्र होने पर भी लोग दर्जी और धोबी को कहते हैं कि भाई ! हमें जल्दी वस्त्र दो, हम नन फिरते हैं। इसी प्रकार साधुओं को वस्त्र होने पर भी अचेलक समझ लेना योग्य है । यह प्रथम आचार हुआ । २ औदेशिक कल्प - उद्देसिअ = औदेशिक कल्प अर्थात् आधाकर्मी । साधु के निमित्त अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र और उपाश्रय आदि जो बनाया हो वह प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ में एक साधु को, एक साधु के समुदाय को, अथवा एक उपाश्रय को आश्रित कर के बनाया गया हो वह सब साधुओं को नहीं कल्पता । परन्तु बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ में जिस साधु को उद्देश कर के बनाया गया हो उसको ही नहीं कल्पता दूसरों को कल्पता है । यह दूसरा औदेशिक आचार है । ३ शय्यातर कल्प तीसरा कल्प शय्यातर- जो उपाश्रय का स्वामी हो सो शय्यातर, उसका पिण्ड अर्थात् १ अशन, २ पान, For Private And Personal प्रथम व्याख्यान ॥ २७

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