Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 6
________________ PAHATETTITITIATRI कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक दिन चंगदेव के साथ चाचिग भोजन कर रहा था। उसने । चंगदेव से पूछा बहुत अच्छे बेटा, तुझे गुरुदेव लगते हैं। मन अच्छे लगते हैं? होता है मैं उनके वहाँ माँ नहीं मिलेगी, पास ही रहूँ। पढ़ाई करनी पड़ेगी, नंगे पाँव चलना पड़ेगा। पिताजी ! माँ कहती है, बिना कष्ट पाये भगवान नहीं मिलते हैं। मैं सब कष्ट सहकर भी भगवान को पाना चाहता हूँ। अगले दिन चाचिग सेठ चंगदेव को लेकर देवचन्द्र सूरि के पास आया गुरुदेव ! इसका मन आपके पास ही लगता है। इसे आप अपनी शरण में रख लें। चंगदेव को साथ लिए गुरुदेव खंभात नगर में पधारे। एक दिन गुजरात का महामंत्री उदयन गुरुदेव के दर्शन करने आया। चंगदेव को पढ़ते देखकर पूछा गुरुदेव, यह बालक /मंत्रीश्वर, यह बड़ा कौन है? इतनी छोटी । ही होनहार बालक उम्र में शास्त्र पढ़ / है। धंधुका के चाचिग रहा है? सेठ का पुत्र है। चंगदेव देवचन्द्र सूरि के पास रहने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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