Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 15
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य तभी एक दिव्य प्रकाश पुंज के साथ देवी प्रकट हुई। दोनों मुनि चकित होकर यह अद्भुत दृश्य देख रहे थे। तभी देवी बोली मैं शासन देवी हूँ। तुम्हारे उत्कृष्ट पुण्य प्रभाव के कारण सामा मैं ही तुम्हें यहाँ ले आई हूँ। भगवान नेमिनाथ की यह निर्वाण भूमि है। मैं तुम्हें कुछ मंत्र व दिव्य औषधियाँ दूंगी। तुम उन्हें स्मरण रखना। इन मंत्रों के प्रभाव से तुम सर्वत्र जैन धर्म की प्रभावना तथा भक्तों की रक्षा कर सकोगे। शासन देवी ने दोनों को मंत्र आदि दिये। मुनि सोमचन्द्र ने उन मंत्रों को सिद्ध कर लिया। देवेन्द्र सूरि कुछ दिन याद रखने के पश्चात् वह मंत्र भूल गये। दोनों मुनि पाटन लौट आये। एक बार आचार्यश्री ने पाटन संघ को एकत्र सम्पूर्ण संघ ने बड़े उत्साह के साथ आचार्य पद महोत्सव करके कहा मनाया। हजारों भक्तों की उपस्थिति में आचार्यश्री देवचन्द्र सूरि मुनि सोमचन्द्र जैसा ने घोषणा की- मुनि सोमचन्द्र चन्द्रमा की तरह निर्मल | प्रभावशाली जिनशासन की कान्ति वाला और 'हेम' (स्वर्ण) की बहुत प्रभावना कर सकता है। PARIDAVAVITA भाँति जिन शासन की शोभा बढ़ाने वाला। मैं इन्हें आचार्य पदवी से है। अतः आज सेसोमचन्द्र मुनि आचार्य अलंकृत करना चाहता हूँ। हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध होंगे। अवश्य गुरुदेव; आपका विचार अति उत्तम है। JOINI एक साथ हमारों कण्ठों से गूंज उठा-'नूतन आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि की मय#e # आचार्य पद वि. सं. ११६६ वैशाख शुक्ल ३ अक्षय तृतीया। 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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