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कलिकाल सर्वज्ञ: हेमचन्द्राचार्य
कुमारपाल ने पूछा
गुरुदेव, आपकी सेवा में पालकी, रथ आदि भिजवा दूं?
नहीं ! पदयात्रा करना हमारा आचार है। हाँ, हम शत्रुजय, गिरनार तीर्थ की यात्रा करते हुए देवपत्तन में 2आपसे मिल लेंगे।
आचार्यश्री तीर्थ-दर्शन करते हुए ठीक समय पर देवपत्तन पहुंच गये। पूजा प्रतिष्ठा के दिन वहाँ के प्रमुख राजपुरोहित भाव वृहस्पति ने निवेदन किया- आचार्यश्री, आप भी
भगवान सोमनाथ की
स्तुति कीजिए। अवश्य
हेमचन्द्रसूरि ने तुरन्त बनाये श्लोकों से महादेव की स्तुति की
जिसने महाराग, महाद्वेष,
महामोह रूपी महामल्ल और कषायों को जीत लिया
है वह महादेव हैं।
# महारागो महाद्वेषो महामोह स्तथैवच। JanE कषायश्च हतो येन महादेवः स उच्यते॥
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