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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य कुछ ईर्ष्यालु पंडित आचार्यश्री की प्रशंसा सुनकर जल उठे। बोले
महाराज, आप जिनको अपना गुरु मानते हैं, वे आपके भगवान का दर्शन भी नहीं करेंगे, ना ही सोमनाथ को हाथ जोड़ेंगे।
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ठीक है, मैंदेखूगा।
दूसरे दिन कुमारपाल हेमचन्द्रसूरि के पास आया
गुरुदेव, आपकी कृपा से सोमनाथ मन्दिर के निर्माण का कार्य सम्पन्न हो गया है। अब मैं सोमनाथ की यात्रा करना चाहता हूँ। क्या आप मेरे साथ चलने
की कृपा करेंगे।
राजन् ! तीर्थयात्रा करना तो सौभाग्य की बात है। हम अवश्य
चलेंगे।
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