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दिवाकर चित्रकथा)
अंक ४० मूल्य १७.००
कलिकाल सर्वज्ञ
हेमचन्द्राचार्य
सुसंस्कार निर्माण
विचार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि
प्राकत
元
भारती
अकादमी
मनोरंजन
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कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य
भगवान महावीर के पश्चात जैन परम्परा में अनेक प्रभावशाली विद्यासिद्ध लोकोपकारी महान आचार्य हुए जिनमें आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि का नाम स्वर्ण अक्षरों में मंडित है ।
आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि असाधारण विभूतियों से सम्पन्न महामानव थे। वे उत्कृष्ट श्रुत पुरुष थे। व्याकरण-कोष-न्याय-काव्य छन्दशास्त्र-योग-तर्क- इतिहास आदि विविध विषयों पर अधिकारिक साहित्य का निर्माण कर सरस्वती के भण्डार को अक्षय श्रुत निधि से भरा था। वे ज्ञान के महासागर । साथ ही उन्होंने गुजरात के राजा सिद्धराज और कुमारपाल को जैनधर्मानुरागी बनाकर जिनशासन के गौरव में चार चांद लगाये । धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में नवचेतना जगाई। उनकी बहुमुखी विलक्षण प्रतिभा के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए गुर्जर नरेश कुमारपाल ने उन्हें 'कलिकाल सर्वज्ञ' के विरुद से अलंकृत किया। शिवभक्त राजा सिद्धराज उनकी विद्वत्ता, नीतिज्ञता, निस्पृहता, धार्मिक सहिष्णुता, उदारता और समन्वयशीलता का सदा सन्मान करते थे। संपूर्ण पश्चिमी भारत में अहिंसा के प्रचार में आचार्यश्री का योगदान अद्वितीय माना जाता है। साथ ही कला, साहित्य, संस्कृति के अभ्युदय में उनका योगदान शताब्दियों तक जीवंत रहेगा। उनका समय गुजरात राज्य के बहुमुखी उत्कर्ष का समय था ।
आचार्यश्री के विराट व्यक्तित्व का चित्रण पृष्ठों की संख्या सीमित होने के कारण एक भाग में सम्भव नहीं हो सका है। इसलिए उनका चरित्र दो भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। दूसरा भाग भी इसके साथ ही शीघ्र प्रकाशित हो रहा है ।
अनेक ग्रंथों व प्रचलित कथाओं के आधार पर प्रस्तुत चित्रकथा में सार रूप में आचार्यश्री एवं महाराज कुमारपाल के जीवन की प्रेरणाप्रद महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्रित करने का प्रयास किया है आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि जी म. ने । हम आपके आभारी हैं ।
-महोपाध्याय विनय सागर
श्रीचन्द सुराना "सरस"
लेखक : आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि.
सम्पादक : मुनि चिदानंद विजय प्रबंध सम्पादक : संजय सुराना
प्रकाशक
सह-सम्पादक : श्रीचन्द सुराना "सरस" चित्रांकन : श्यामल मित्र
दिवाकर प्रकाशन
ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. दूरभाष : 351165 सचिव, प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर
13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 524828, 561876, 524827
अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) आत्म-वल्लभ एंटरप्राइजेज, लुधियाना
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कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य
गुजरात के धंधुका नगर में चाचिग नाम का एक सेठ रहता था। उसकी पत्नी थी पाहिनी देवी। एक रात पाहिनीदेवी ने स्वप्न देखा-परासीबारे स पाहिनी / ले मैं तुझे एका
दिव्य रत्न दे रही हूँ।
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पाहिनी वह रत्न लेकर गुरुदेव श्री देवचन्द्रसूरी के पास जाती है
पाहिनी ने दोनों हाथ बढ़ाये, देवी ने उसकी हथेली पर रत्न रख दिया।
गुरुदेव आप यह रत्न ग्रहण कीजिए।
गुरुदेव ने पाहिनी से रत्न ग्रहण कर लिया।
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प्रातः एक पड़ोसन ने आकर कहा
पाहिनी बहन, सुना है, आचार्यश्री देवचन्द्र सूरि जी नगर में पधारे हैं। दर्शन, करने चलोगी न ?
]
हाँ-हाँ, ठहरो, अभी तैयार होती हूँ।
इस बालक .को चंगदेव कहेंगे।
कलिकाल सर्वज्ञ: हेमचन्द्राचार्य
# वि. सं. ११४५ कार्तिक शुक्ल १५/
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पाहिनी उपाश्रय में आई। आचार्यश्री के दर्शन कर उसने रात के स्वप्न की बात कही। आचार्यश्री कुछ विचार कर बोले
समय पर पाहिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। चाचिग सेठ ने पुत्र का जन्म महोत्सव मनाया। बुआ ने
नाम रखा
बहन ! तुम्हें एक श्रेष्ठ रत्न जैसा पुत्र प्राप्त होगा। तुमने वह रत्न मुझे दिया है, इसका अर्थ है, तुम मुझे शिष्य भिक्षा दोगी।
देखो, बालक
का मुखड़ा कैसा चाँद सा चमक रहा है।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य र चंगदेव को पाठशाला भेजा एक दिन माता के साथ चंगदेव श्री देवचन्द्र सूरि के दर्शन 106761 ? विवेक देखकर गुरुजी प्रसन्न करने गया। वे मन्दिर में भगवान की प्रदक्षिणा कर रहे थे। Jyanmandir@kobatirth.org हा गया बाल
पाहिनी भी खड़ी-खड़ी परमात्मा की स्तुति करने लगी। तभी सेठ तुम्हारा पुत्र एक
शरारती चंगदेव जाकर गुरुदेव के आसन पर बैठ गया। दिन कोई महापुरुष बनेगा। इस छोटी-सी उम्र में ऐसा विवेक और इतना विनय?
गुरुदेव और पाहिनी की नजर उस पर पड़ी तो चंगदेव | खिलखिलाकर हंस पड़ा। आचार्यश्री भी हँसते हुए बोले
बहन ! तुझे अपना स्वप्न याद है? देख, तेरा लाड़ला खुद ही मेरे आसन पर बैठ गया है।
अब इसे हमें सौंप दे।
एक दिन गुरुदेव ने चाचिग सेठ से कहा
सेठ, तुम्हारा पुत्र गुरुदेव, आपकी बहुत भाग्यशाली वाणी सत्य हो।
होगा।
Raar
सेठ, हमारा वचन सत्य करने के लिए तुम्हें भी मोह त्यागना पड़ेगा। वह हीरा है, जौहरी के हाथ में देना होगा। बोलो
गुरुदेव, मैं
पहले चंगदेव से)
भी पुडूंगा।
पाहिनी मौन रही।
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PAHATETTITITIATRI
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक दिन चंगदेव के साथ चाचिग भोजन कर रहा था। उसने । चंगदेव से पूछा
बहुत अच्छे बेटा, तुझे गुरुदेव
लगते हैं। मन अच्छे लगते हैं?
होता है मैं उनके वहाँ माँ नहीं मिलेगी, पास ही रहूँ। पढ़ाई करनी पड़ेगी, नंगे
पाँव चलना पड़ेगा।
पिताजी ! माँ कहती है, बिना कष्ट पाये भगवान नहीं मिलते हैं। मैं सब कष्ट सहकर भी भगवान
को पाना चाहता हूँ।
अगले दिन चाचिग सेठ चंगदेव को लेकर देवचन्द्र सूरि के पास आया
गुरुदेव ! इसका मन आपके पास ही लगता है। इसे आप अपनी शरण में रख लें।
चंगदेव को साथ लिए गुरुदेव खंभात नगर में पधारे। एक दिन गुजरात का महामंत्री उदयन गुरुदेव के दर्शन करने आया। चंगदेव को पढ़ते देखकर पूछा
गुरुदेव, यह बालक /मंत्रीश्वर, यह बड़ा कौन है? इतनी छोटी । ही होनहार बालक उम्र में शास्त्र पढ़ / है। धंधुका के चाचिग रहा है?
सेठ का पुत्र है।
चंगदेव देवचन्द्र सूरि के पास रहने लगा।
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क्या यह दीक्षा
लेगा?
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
महामंत्री हर्षित होकर बोलेयदि दीक्षा ले तो इसका दीक्षा महोत्सव
गुरुदेव ! मेरा अहोभाग्य। यह सौभाग्य मुझे ही मिलना चाहिए।
तुम करोगे?
और एक दिन खूब धूमधाम से चंगदेव को दीक्षा प्रदान की गई। #
/आज से यह मुनि AWNAVAVAJANIYLIPMAMANINETRAJAVA सोमचन्द्र के नाम ।
से प्रसिद्ध होगा।
Tout le
Spele ofreadhannel
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लगभग दस वर्ष पश्चात एक दिन आचार्यश्री अपने शिष्यों के साथ ज्ञानचर्चा कर रहे थे। आचार्यश्री ने बताया
गणधर गौतम स्वामी सर्वविद्या सम्पन्न थे। एक-एक शब्द के असंख्य अर्थ और एक-एक अर्थ के असंख्य पर्याय का ज्ञान था उन्हें।
# वि. सं. ११५४ माघ सुदि १४ दिन शनिवार, उम्र ९ वर्ष।
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मुनि सोमचन्द्र ने पूछा
गुरुदेव ! क्या अब ज्ञान का वैसा प्रकाश नहीं मिल सकता?
कलिका
मिल सकता है,
परन्तु बहुत कठिन साधना चाहिए।
ज्ञान प्राप्ति के लिए तो पूरा जीवन ही समर्पित कर
सकता हूँ। फिर कश्मीर कितना 'है? दूर
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मुनि सोमचन्द्र कुछ देर तक गहरे विचार मन्थन के बाद मुनि सोमचन्द्र ने गुरुदेव से निवेदन कियाविचार करते रहे
वत्स ! मेरी कल्पना में तेरा उज्ज्वल भविष्य झलक रहा है। तेरे हाथों जिन शासन और श्रुत ज्ञान की अपार महिमा फैलेगी।
स
हेमचन्द्राचार्य
गुरुदेव, मुझे साधना का मार्ग बताइए। मैं ज्ञान के सागर में गोता लगाना चाहता हूँ।
# खंभात ही प्राचीन स्तंभन तीर्थ कहलाता है।
गुरुदेव, श्रु सरस्वती की आराधना के लिए कश्मीर जाने की मेरी इच्छा है। आशीर्वाद प्रदान कीजिए।
गुरुदेव के बताये शुभ मुहूर्त में मुनि सोमचन्द्र एक अन्य सहायक मुनि के साथ कश्मीर यात्रा के लिए चल पड़ा। यात्रा करते हुए दोनों मुनि खंभात नगर आये। #
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वत्स ! कश्मीर में सरस्वती देवी का शक्तिपीठ है। वहाँ जाकर सरस्वती की आराधना की जाये तो तुम्हारा मनोरथ सफल हो सकता है।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमच देव खंभात के बाहर 'उज्जयन्तावतार' नामक एक अति प्राचीन जिनालय था। दोनों मुनियों ने इसी जिनालय के समीप धर्मस्थान में विश्राम किया। रात्रि के शान्त वातावरण में मुनि सोमचन्द्र के मन में एक कल्पना उठीआज रात मैं इसी
मुनि सोमचन्द्र शुद्ध वस्त्र पहनकर जिनालय में आये। जिनालय में देवी
और भूमि पर आसन बिछाकर ध्यानस्थ हो गये। सरस्वती का ध्यान) चालू कर दूँ।
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मध्य रात्रि के समय देवी सरस्वती प्रकट हुई
वत्स ! मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुझे कश्मीर जाने की जरूरत नहीं है। मैं 'सिद्ध सारस्वत होने का वरदान देती हूँ। सर्व विद्या सिद्धो भव'
मुनि सोमचन्द्र के चेहरे पर तेज चमक उठा। हृदय में हर्ष उछल रहा था। अपने साथी मुनि के साथ वापस गुरुदेव के पास लौट आये।। वत्स ! अपनी गुरुदेव! आपकी कृपा से ( विशिष्ट प्रतिभा-मेधा एक ही रात्रि की आराधना से जिनशासन की में सरस्वती देवी की कृपा प्रभावना करो।
हो गई है मुझ पर।
और देवी अदृश्य हो गई।
मुनि सोमचन्द्र साहित्य सर्जना में जुट गये। For Private 7 Personal Use Only
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक बार आचार्य देवचन्द्र सूरि अपने शिष्यों के साथ नागपुर पधारे। मुनि सोमचन्द्र, वीरचन्द्र मुनि के साथ भिक्षा के लिए निकले। एक विशाल हवेली में भिक्षा के लिए गये। हवेली के विशाल आँगन में सेठ का परिवार चार पुत्र, चार पुत्र वधुएँ, पोता-पोती, सेठ धनद और सेठानी यशोदा आदि बैठे हुए पानी में आटा, नमक मिलाकर राब जैसा घोल बनाकर पी रहे थे। मुनि सोमचन्द्र ने देखा और अपने साथी मुनि से पूछा
पूज्यवर, धनद सेठ की यह
यह समय का फेर है। BAS ISARराजमहल-सी विशाल हवेली, ये सभी (किसी जमाने का कोटीपति आज
सुकुमार परिवारीजन दीन-हीन बने देखो, मिट्टी के बर्तनों में राब क्यों बैठे हैं?
पीकर समय गुजार रहा है। -
आप इस सेठ को गरीब समझ रहे हो, देखो घर के उस)। कोने में सोने, चाँदी की मोहरों
का ढेर लगा है।
सच ही तो कह रहा हूँ मुनिवर !
मुझे तो यह सेठ गरीब नहीं, कंजूस दीखता है। जिसके घर में सोने के मोहरों का ढेर लगा है।
वह दरिद्र कैसे?
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मुनि वीरचन्द्र आश्चर्य से सोमचन्द्र मुनि की तरफ देखने लगे
छोटे महाराज, क्या कह रहे हो?
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य धनद सेठ ने दोनों मुनियों की बात सुनी तो हाथ मोड़कर पूछा- महाराज, आप सोने
की मोहरों की क्या बात कर
रहे थे?
छोटे महाराज पूछ रहे हैं, तुम्हारे घर के कोने में सोने-चाँदी की मोहरों का ढेर लगा है और तुम सब आटे की राब पी रहे,
हो? यह क्या बात है?
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सेठ ने मुनि सोमचन्द्र के पैर पकड़ लिएगुरुदेव ! मुझ भाग्यहीन से ऐसा मजाक आप तो न करें। कहाँ हैं मोहरें? वह तो NY
कोयलों का ढेर है।
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फिर सेठ ने बतायाकिसी जमाने में मैंने इन घड़ों को सोने-चाँदी की मोहरें भरकर ही भूमि में गाड़ा था परन्तु तकदीर के फेर ने उन सबको कोयला बना दिया। क्या आप इन कोयलों को ही सोना
चाँदी की मोहरें बता रहे हैं?
मुनि वीरचन्द्र बोले- सेठ, तुम्हारा दुर्भाग्य आज विदा
हो गया है। मुनि सोमचन्द्र की दृष्टि पड़ते ही वह कोयला फिर
सोना हो गया है।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
सेठ अन्दर देखने आया। घड़ों में सोने-चाँदी सेठ दोनों मुनियों के साथ उपाश्रय में आया। की मोहरें भरी थीं।
Leod OOON
सेठ ने बाहर आकर मुनियों के पाँव पकड़ लिए।
अब आज्ञा करें, मैं इस स्वर्ण का कहाँ उपयोग करूँ?
गुरुदेव ! आपके शिष्य की अमृत दृष्टि के प्रभाव से कोयला
इसके पश्चात् आचार्य देवचन्द्र सूरि विहार करते हुए पाटन पधारे। एक दिन एक वृद्ध पुरुष ने आकर आचार्यश्री को वन्दना की। महाराज, गौड देश में आजकल बड़े-बड़े मंत्रवादी, विद्यासिद्ध, महापुरुष हैं। आप भी वहाँ पधारिये। इससे प्रजा का कल्याण होगा।
बनी मेरी मोहरें फिर से सोना बन गईं।
धर्म के प्रभाव से पुण्य बढ़ता है, पुण्य प्रभाव से धन मिलता है। इसलिए धर्म-प्रचार में धन का सदुपयोग करो।
धनद सेठ ने उस स्वर्ण के एक भाग से भगवान महावीर स्वामी का जिन प्रासाद बनवाया।
उसके चले जाने के बाद मुनि सोमचन्द्र ने आचार्यश्री से निवेदन किया
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सेठ ! साधना का ऐसा ही प्रभाव होता है।
"गुरुदेव, आप आज्ञा दें तो मैं गौड देश में जाना चाहता हूँ।
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आचार्यश्री
हाँ, मुझे लगता है, तुम्हें वहाँ विशेष
लाभ होगा।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
गुरुदेव की आज्ञा लेकर मुनि सोमचन्द्र अपने साथी देवेन्द्रसूरि जी के साथ गौड देश के | लिए चल पड़े। कुछ दिनों की यात्रा के बाद दोनों मुनि खेरालु पहुंचे। रात भर उपाश्रय
में विश्राम किया। अगले दिन साँझ ढलते समय एक भव्य शरीर धारी वृद्ध पुरुष वहाँ | आया। उसकी आँखों में बड़ा तेज था। चेहरे पर शान्त प्रसन्नता। उसने पूछा
महात्मन ! क्या मैं रातभर आपके पास रुक सकता हूँ?
AASPM
मुनि सोमचन्द्र ने दो पल गौर से उस वृद्ध पुरुष को देखा, || वृद्ध पुरुष ने पूछाफिर बोले- महात्मन ! आप हमारे साथ रहेंगे
ANOORN तो हमें भी आनन्द
SOTRAMहम विशिष्ट विद्या अनुभव होगा।
आप लोग कहाँ प्राप्ति के लिए गौड जा रहे हैं? देश जा रहे हैं।
| फिर उन्होंने देवेन्द्रसूरि से कहामुझे तो यह कोई
हाँ, मुझे भी विद्यासिद्ध महापुरुष यही लगता है।
लगता है।
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.
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
वृद्ध पुरुष
आपको इतनी दूर जाने की क्या U जरूरत है? मेरे पास सभी विद्याएँ हैं। आप जैसे योग्य पात्र को विद्या देकर मेरा मन सन्तुष्ट होगा। बस, आप मुझे गिरनार तीर्थ पर ले चलो।
GOOOD
S
ठीक है, हम । प्रातःकाल गिरनार
की तरफ ही प्रस्थान करेंगे।
न
OoEO
अगले दिन प्रातः उठे तो उन्हें एक विचित्र ही दृश्य दिखाई दिया। ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखर, हरे-भरे वृक्ष, शीतल पवन चल रही है। मुनि सोमचन्द्र ने कहा
महाराज, हम कहाँ आ गये? क्या कोई विद्या शक्ति हमें यहाँ ले आई? और वे वृद्ध पुरुष कहाँ चले गये?
मुझे लगता है हम गिरनार पर्वत पर
आ पहुंचे हैं।
लोसनीनानाचानक
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य तभी एक दिव्य प्रकाश पुंज के साथ देवी प्रकट हुई। दोनों मुनि चकित होकर यह अद्भुत दृश्य देख रहे थे। तभी देवी बोली
मैं शासन देवी हूँ। तुम्हारे उत्कृष्ट पुण्य प्रभाव के कारण सामा
मैं ही तुम्हें यहाँ ले आई हूँ। भगवान नेमिनाथ की यह निर्वाण भूमि है। मैं तुम्हें कुछ मंत्र व दिव्य औषधियाँ दूंगी। तुम उन्हें स्मरण रखना। इन मंत्रों के प्रभाव से तुम सर्वत्र जैन धर्म की प्रभावना तथा भक्तों की रक्षा कर सकोगे।
शासन देवी ने दोनों को मंत्र आदि दिये। मुनि सोमचन्द्र ने उन मंत्रों को सिद्ध कर लिया। देवेन्द्र सूरि कुछ दिन याद रखने के पश्चात् वह मंत्र भूल गये। दोनों मुनि पाटन लौट आये। एक बार आचार्यश्री ने पाटन संघ को एकत्र सम्पूर्ण संघ ने बड़े उत्साह के साथ आचार्य पद महोत्सव करके कहा
मनाया। हजारों भक्तों की उपस्थिति में आचार्यश्री देवचन्द्र सूरि मुनि सोमचन्द्र जैसा
ने घोषणा की- मुनि सोमचन्द्र चन्द्रमा की तरह निर्मल | प्रभावशाली जिनशासन की
कान्ति वाला और 'हेम' (स्वर्ण) की बहुत प्रभावना कर सकता है।
PARIDAVAVITA भाँति जिन शासन की शोभा बढ़ाने वाला। मैं इन्हें आचार्य पदवी से
है। अतः आज सेसोमचन्द्र मुनि आचार्य अलंकृत करना चाहता हूँ।
हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध होंगे।
अवश्य गुरुदेव; आपका विचार अति उत्तम है।
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एक साथ हमारों कण्ठों से गूंज उठा-'नूतन आचार्य
श्री हेमचन्द्र सूरि की मय#e # आचार्य पद वि. सं. ११६६ वैशाख शुक्ल ३ अक्षय तृतीया। 13
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य उन्हीं दिनों पाटन में चौलक्य राजवंश का एक शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी राजा गरिश्वर जयसिंह सिद्धराज
श्वर जयसिंह सिद्धराज आसपास के प्रदेशों को जीतकर अपना प्रभुत्व बढ़ाता जा रहा था। उसने मालवराज यशोवर्मन को भी जीतकर अपने आधीन कर लिया था। राजधानी पाटन में विजयोत्सव मनाया जा रहा था। इस अवसर पर सिद्धराज ने आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि को आशीर्वाद प्रदान करने सादर आमन्त्रित किया। राजसभा में अनेक राजाओं, सामन्तों के अलावा सभी धर्मों के प्रमुख साधू-सन्त पधारे। अनेक राजा सामन्तों ने सिद्धराज को विविध मूल्यवान उपहार भेंट किये। सामने धारा नगरी (मालव) से प्राप्त हीरे, मोती आदि मूल्यवान वस्तुएँ तथा राजा भोज के ज्ञान भण्डार के अनेक स्वर्ण लिखित ग्रन्थ भी रखे थे। राजा सिद्धराज ने कहामालवदेश की कला, संस्कृति और साहित्य बहुत | ही उच्चकोटि का रहा है। हमारा गजरात शौर्य ।
और समृद्धि में किसी से कम नहीं है, परन्तु मैं चाहता हूँ गुजरात का साहित्य और कला वैभव / इससे भी बढ़ा-चढ़ा हो। क्या यह सम्भव है?
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राजा ने एक पुस्तक हाथ में लेकर बताया
यह राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत व्याकरण है। "सरस्वती व कंठाभरण" क्या गुजरात का कोई विद्वान् ऐसी व्याकरणEN रचना कर सकता है?
सभी विद्वान् एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सन्नाटे को तोड़ते हुए हेमचन्द्राचार्य ने कहा
राजन् ! गुजरात में भी विद्वानों की कमी नहीं है। मैं इससे भी श्रेष्ठ व्याकरण रचना कर
सकता हूँ।
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सिद्धराज का चेहरा खिल उठा
अवश्य गुरुदेव ! आप सर्व समर्थ हैं। ऐसी कृति तैयार होने से मेरा यश, आपकी ख्याति और जनता का उपकार होगा। #
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परन्तु राजन् ! इसके लिए सहायक ग्रन्थों की जरूरत पड़ेगी?
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
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# यशो मम तवख्यातिः पुण्यं च मुनिनायक ! विश्वलोकोपकाराय कुरु व्याकरण नवम् !
आपको राज्य की ओर से सभी साधन उपलब्ध कराये जायेंगे, आज्ञा कीजिए।
राजा के आदेश से कुछ विद्वान काश्मीर गये। वहाँ एक वर्ष पश्चात् एक श्रावक सिद्धराज के पास आयासे आठ विशाल व्याकरण ग्रन्थ लेकर आये। हेमचन्द्राचार्य नये व्याकरण की रचना में
जुट गयें।
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महाराज ! आचार्यश्री ने एक वर्ष तक कठिन परिश्रम करके नये व्याकरण की रचना कर ली है।
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काश्मीर संस्कृत विद्या का केन्द्र रहा है। वहाँ के ज्ञान भण्डारों से अब तक उपलब्ध सभी व्याकरणों की प्रतियाँ मँगाई जायें।
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वाह ! इतने अल्प समय में। क्या नाम रखा व्याकरण का।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
राजा ने आदेश दिया
आचार्यश्री ने "सिद्ध हेमचन्द्र
शब्दानुशासन" नाम सूचित किया है। लगभग सवा लाख
श्लोक हैं उसके।
सम्मान पूर्वक ग्रन्थ राजसभा में लाया जाय।
Nood
राजा के आदेशानुसार पट्ट हस्ती पर सोने का सिंहासन रखा गया। उस पर मोतियों का छत्र लगाया। स्वर्ण थाल में व्याकरण ग्रन्थ रखकर। दोनों तरफ दो युवतियाँ चंवर दुलाने लगीं। हजारों स्त्री-पुरुषों के जुलूस के साथ ग्रन्थ राजसभा में पहुंचा।
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फिर रामसभा में घोषणा की। neROGE
कलिकाल सर्वज्ञः हेमचन्द्राचार्य
आचार्य देव ने इस अद्भुत व्याकरण की रचना कर गुजरात के यश को अमर बना दिया है। गुजरात के सभी विद्यालयों में इस व्याकरण का अध्ययन
होना चाहिए।'
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महाराज! इसके लिए पहले पण्डित तैयार होने चाहिए और ग्रन्थ की प्रतियाँ भी।
राजा के आदेश से अनेक विद्वानों को व्याकरण पढ़ाया गया और ३00 आलेखकों को नियुक्त कर इसकी प्रतियाँ तैयार कराई गईं।
HAREONI
इस प्रकार एक सुन्दर और समग्र व्याकरण की रचना सम्पन्न हुई। सिद्भराज ने एक-एक प्रति अपने राज्य के प्रत्येक धर्म सम्प्रदाय के मुख्य धर्माचार्य को भेंट की और शेष भारत वर्ष में सर्वत्र भेजी।
इतना ही नहीं; भारत के बाहर ईरान, लंका और नेपाल में भी प्रतियाँ भविष्य वाणी भेजी।
गुजरश्वर सिद्धराम को कोई सन्तान नहीं थी। उसने अनेक तीर्थ यात्राएँ कीं। ज्योतिषियों को पूछा, यंत्र-मंत्र-तंत्र किये फिर भी उसकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई। एक दिन उसने आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि से अपनी मानसिक वेदना बताई
गुरुदेव, मुझे पुत्र प्राप्ति होगी या नहीं; तथा मेरे बाद गुजरात का राजा कौन होगा? इस अनबूझ पहेली
का समाधान कीजिए।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य आचार्यश्री मौन रहे। परन्तु राजा के बार-बार कहने पर वे ध्यानस्थ हुए। अम्बिका देवी की आराधना की। देवी प्रत्यक्ष प्रकट हुई
मुझे किसलिए याद किया है?
भगवती! गुर्जरेश्वर सिद्भराज को पुत्र योग है या
नहीं?
अपूर्व जन्म के सघन पाप कर्मों के कारण उसे सन्तान प्राप्ति नहीं हो सकती।
त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल। वह परम शूरवीर भी होगा और परम धार्मिक भी।
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600
फिर उसके बाद गुजरात का राजा कौन होगा?
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आचार्यश्री ने सिद्धराज से कहा
देवी वचन के अनुसार राजन् ! तुम्हें सन्तान गुरुदेव ! फिर मेरे
त्रिभुवनपाल का पुत्र प्राप्ति का योग नहीं है। बाद इस राज्य का |
कुमारपाल इस राज्य का)
स्वामी होगा। स्वामी कौन होगा?
। कौन ! वही कुमार । (पाल? नहीं ! यह कभी
नहीं हो सकता।
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आचार्यश्री
राजन् ! जो भवितव्य है, उसे स्वीकारना ही होगा और जो संभव नहीं है उसके लिए चिन्ता की आग में जलना भी समझदारी नहीं है।
नहीं, नहीं ! मैं
उस दुष्ट को पकड़कर जेल में बन्द करवा दूँगा।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
राजमहल में आकर सिद्धराज ने गुप्तचरों को आदेश दिया
कुमारपाल बचपन से ही बड़ा बुद्धिमान, वीर और साहसी था। साथ ही बड़ा दयालु भी था। वह महत्वाकांक्षी होते हुए भी अपने पर संयम रखना जानता था। खतरों से खेलना, अन्याय, अनीति से संघर्ष करना और प्रजा के दुःख-दर्द दूर | करना यह उसका स्वभाव था। भोपलदेवी नाम की राजकुमारी के साथ उसका विवाह हुआ। यद्यपि सिद्धराज और त्रिभुवनपाल के बीच मधुर सम्बन्ध थे। दोनों | एक दूसरे के मेहमान भी होते थे परन्तु कुमारपाल बहुत ही स्वाभिमानी था। उसके पराक्रमी, निर्भीक और तेज तर्रार स्वभाव के कारण सिद्धराज मन ही मन उससे सशंकित और भयभीत सा रहता था।
कुमारपाल का परिचय
गुजरात के चौलुक्यवंशी क्षत्रियों में मूलराज नाम के एक पराक्रमी राजा हुए। | इनके पश्चात् चामुण्डराय, दुर्लभराज और भीमदेव जैसे शूरवीर, विद्याप्रेमी और | दानेश्वेरी राजाओं ने गुजरात के वैभव में चार चाँद लगाये। राजा भीमदेव के दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी का पुत्र क्षेमराज था। छोटी रानी के पुत्र का नाम कर्ण था।
| क्षेमराज दधिस्थली का तथा कर्ण पाटण का राजा था। कर्ण का पुत्र जयसिंह चामुण्डराय
| सिद्धराज पाटण के राजसिंहासन पर बैठा। उधर क्षेमराज का पुत्र देवप्रसाद दधिस्थली का राजा बना। देवप्रसाद के बाद उसका पुत्र त्रिभुवनपाल दधिस्थली के राजसिंहासन पर बैठा।
त्रिभुवनपाल बड़ा शूरवीर और प्रजावत्सल था। त्रिभुवनपाल की पत्नी का नाम था कश्मीरा देवी। वह रूप, गुण, शील की मूर्ति थी। उसके तीन पुत्र थेमहीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल ।
चौलुक्य वंशावली
कुमारपाल जहाँ भी है, जिन्दा यामरा, उसे पकड़कर लाओ।
देव प्रसाद
19
क्षेमराज
महीपाल
मूलराज
- दुर्लभराज भीमदेव
→
VING
कर्ण
जयसिंह सिद्धराज
त्रिभुवनपाल
कीर्तिपाल कुमारपाल
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________________
उन्हीं दिनों कुमारपाल आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि के सम्पर्क में आया। उन्होंने उसकी तेजस्वी मुखमुद्रा और हस्तरेखाएँ पढ़ीं।
वत्स ! तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, परन्तु वर्तमान भयंकर संकटों से घिरा है।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
गुरुदेव, मैंने आपका चरण स्पर्श किया है, अब मुझे कोई तूफान विचलित नहीं कर सकेगा।
आचार्यश्री ने उसे सावधान रहने के लिए कहा।
जान मुट्ठी में लिए छुपता-छुपाता जंगल-जंगल भटकता हुआ एक बार खंभात पहुँच गया। वहाँ एक जिनालय के चबूतरे पर बैठ गया। मन्दिर से एक महिला पूजा करके बाहर आई। कुमारपाल ने पूछावह सामने इतनी भीड़ क्यों लगी है?
तुम्हें मालूम नहीं, आचार्य हेमचन्द्र सूरि जी का प्रवचन चल रहा है।
कुमारपाल जैसे ही अपने स्थान पर वापस आया, उसे सूचना मिली
कुमार, आपको पकड़ने चारों तरफ सिद्धराज के
गुप्तचर घूम रहे हैं।
आचार्यश्री ने मुझे पहले ही
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सावधान कर दिया था।
| कुमारपाल वेष बदलकर अकेला ही जंगलों में निकल गया।
यह सुनकर कुमारपाल को धीरज, बँधा। वह चुपके से भीड़ में जाकर बैठ गया।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य प्रवचन समाप्त हुआ। जनता चली गई। अकेला कुमारपाल आचार्यश्री तभी एक प्रौढ़ व्यक्ति आचार्यश्री के पास आया। के पास आया। आचार्यश्री ने देखा। मैले-कुचैले कपड़ों में लिपटा मिट्टी आचार्यश्री ने कहासना कोई चन्द्रकान्त मणि हो। उनकी पारदर्शी आँखों ने तुरन्त उस तेजस्वी चेहरे को पहचान लिया। आशीर्वाद का हाथ उठा
कुमारपाल!
धर्मलाभ ! कब
आये?
इनको पहचानते हो, गुजरात के महामंत्री
उदयन।
गुरुदेव, धर्मलाभ तो तब करें जब कोई चैन से जी पायें। मैं तो जान मुट्ठी में लिए दर-दर भटक रहा हूँ। सात दिन से पेट में अन्न का एक कण नहीं पहुंचा है। क्या इसी प्रकार दुःखों की
आग में जलना ही मेरा प्रारब्ध है? उदयन नजर गड़ाकर कुमारपाल को पहचानने की कोशिश करता है। आचार्यश्री बोले
कुमारपाल ! कुछ समय बाद ही तुम गुजरात के
राजा बनोगे।
कुमार; योगी पुरुषों
का वचन कभी असत्य नहीं होता।
गुरुदेव ! आज तो मेरी दशा एक भिखारी से भी बदतर है। आपका यह वचन असम्भव जैसा लगता है।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य | फिर उन्होंने अपने शिष्य से कहा-
कुमारपाल गद्गद् होकर बोलाएक कागज लो, विक्रम संवत ११६६ मगसर । गुरुदेव ! यदि आपका। वत्स ! जैन संत न तो राज्य लेते और लिखो- वदि ४ को कुमारपाल का कथन सच होगा तो मैं
हैं और न ही राजा बनते हैं। हाँ, राज्याभिषेक होगा। पूरा राज्य आपके चरणों में
तुम जब राजा बनो; जैनधर्म को समर्पित कर दूंगा। आप
दुनियाँ में फैलाना और घर-घर ही राजाधिराज बनेंगे।
अहिंसा धर्म का पालन करवाना।
आचार्यश्री ने एक कागज कुमारपाल को दिया एक महामंत्री उदयन को।
फिर हेमचन्द्राचार्य ने महामंत्री उदयन से कहा
मंत्रिवर ! इस विपत्ति के समय आप कुमार की
सहायता कीजिए।
मंत्री उदयन कुमारपाल को अपने घर ले आया। स्नान और भोजन करके कुमारपाल ने कहा
मंत्रिवर ! आज महीनों बाद स्नान किया है और कई| दिनों बाद पेट भर भोजन मिला है। अब विश्राम
करना चाहता हूँ। अवश्य कुमार,
तुम यहाँ सुरक्षित हो।
कुमारपाल मंत्रीवर की हवेली के भूमिगृह में छुपकर रहने लगा।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक दिन सिद्भराज के गुप्तचर सैनिक घूमते हुए | महामंत्री रात के समय कुमारपाल को आचार्यश्री के महामंत्री की हवेली पर आ गये--
पास ले आये। सारी स्थिति समझाई। आचार्यश्री उसे महाराज का आदेश मिला है।
अपने साथ एक भूमि गृह ले गये। कि कमारपाल खंभात में कहीं
कुमार, इस तलघर छिपा है। इसलिए खंभात का
में उतर जा। चप्पा-चप्पा छान लो। महाराज की
आज्ञा का पालन करो और घर-घर की तलाशी लो।
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फिर दरवाजा बन्द कर सैनिक महामंत्री का घर छोड़कर घर-घर की उसके चारों तरफ ग्रन्थों तलाशी लेने निकल पड़े।
का ढेर लगा दिया। गुप्तचर खोजते-खोजते उपाश्रय में भी आये। कुछ दिनों बाद महामंत्री उदयन ने कुमारपाल को
आवश्यक धन आदि देकर कहाकुमार ! अभी उचित समय है, तुम दूर, बहुत दूर चले जाओ।
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यहाँ तो कोई नहीं
बहुत खोजा, परन्तु कुमारपाल का पता नहीं पा सके।।
कुमारपाल वहाँ से जंगलों में चला गया।
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य बहुत दिनों तक जंगलों की खाक छानने के बाद एक दिन कुमारपाल अपनी बहन प्रेमलदेवी से मिलने पाटन आया। उसके बहनोई कृष्णदेव पाटन के सेनानायक थे। उन्होंने कुमारपाल से कहा
कुमार ! तुम उचित समय पर आये हो, महाराज सिद्धराज मृत्यु शैय्या पर पड़े हैं। अतः अब निश्चिंत होकर यहीं रहो।
सात दिन बाद सिद्धराज की मृत्यु हो गई और मन्त्रियों ने मिलकर महान सत्वशाली कुमारपाल को गुजरात का राजा बना दिया। #
नि
महाराज कुमारपाल
'की जय!
कुछ दिनों बाद आचार्य हेमचन्द्र सूरि पाटन पधारे। महाराज कुमारपाल को सूचना मिली तो उन्होंने महामंत्री उदयन को कहा
मंत्रीश्वर, हम अपने परम उपकारी गुरुदेव के दर्शन करने चलेंगे।
(ORE
Jainfक्रम संवत.99९९ मगसर वदि ४/
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कलिकाल सर्वज्ञ: हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल भक्तिपूर्वक हेमचन्द्राचार्य के दर्शनों के लिए गया। उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू छलक रहे थे। उसने निवेदन किया-RITTANT
गुरुदेव ! इस राज्य को राजन् ! यदि तू उपकारों स्वीकार कर मुझे कृतार्थ का बदला चुकाना चाहता कीजिए। आपके उपकारों का है तो दो काम कर। बदला मैं कैसे चुकाऊँ?
पणजी
Yoeवस्या
KaranNANDY
पहला, जिनेश्वर देव के धर्म पर श्रद्धा और विश्वास कर। दूसरी बात, अपने राज्य से हिंसा और दुर्व्यसनों को
समाप्त कर।
गुरुदेव ! आप जैसा कहेंगे। वैसा ही करूंगा।
राजा कुमारपाल संस्कारों से शिवभक्त था। आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि के सम्पर्क से उसके मन में अहिंसा और जिन भक्ति की भावना जगी। आचार्यश्री के उदार जन कल्याणकारी विचारों से वह बहुत प्रभावित था। साथ ही उनकी यौगिक शक्तियों से अनेक विकट समस्याओं का समाधान भी हुआ और उनकी परम निस्पृहता से राजा उनके प्रति अनन्य आस्थावान बन गया। अपने कल्याण का मार्ग पूछने पर आचार्यश्री ने उसे दो ही मार्ग बताये। एक जिन भक्ति का दूसरा अहिंसा पालन का। जिन भक्ति से प्रेरित होकर राजा ने अपार द्रव्य खर्च करके अनेक भव्य नयनाभिराम मन्दिरों का निर्माण कराया। पाटण शहर में उसने एक अतीव भव्य जिन मन्दिर बनवाया जिसमें नेमिनाथ भगवान की सौ इंच ऊँची प्रतिमा की प्रतिष्ठा आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि के हाथों से सम्पन्न करवाई। राजा ने अपने पिता की स्मृति को जोड़ते हुए इस मन्दिर का नाम 'त्रिभुवनपाल चैत्य' रखा।
25
Page #28
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________________
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक दिन राजा कुमारपाल राजसभा में बैठा था, तभी पुजारियों को वस्त्र, आभूषण से सम्मानित कर राजा देवपत्तन के पुजारी वहाँ आये। उन्होंने अभिवादन करके ने विदा करके फिर अधिकारियों को बुलायानिवेदन किया-ALI
महाराज, सोमनाथ महादेव का प्राचीन काष्ट यह पुण्य कार्य हम
सोमनाथ मन्दिर बहुत जीर्ण हो गया। अवश्य करेंगे। आप
महादेव मन्दिर का है। उसका जीर्णोद्धार निश्चिंत रहें।
जीर्णोद्धार शीघ्र आवश्यक है।
होना चाहिए।
Olman
अधिकारी मन्दिर के निर्माण कार्य में जुट गये। कुमारपाल एक दिन हेमचन्द्रसूरि के पास बैठा चर्चा
कर रहा थागुरुदेव, दो वर्ष हो गये,
राजन् ! किसी मन्दिर का निर्माण कार्य आगे महान कार्य के लिए कुछ नहा बढ़ रहा हा एसा उपाय न कुछ व्रत, संकल्प
बतायें कि यह शुभ कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो जाये AR/
IA करना होता है।
26 .
,
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________________
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
राजा ने तत्क्षण हाथ जोड़े
जब तक निर्माण
पूर्ण न हो जाय, (मांस-मदिरा का त्याग
कर दीजिए।
गुरुदेव, बताइए मैं क्या व्रत संकल्प
करूँ?
गुरुदेव ! मुझे दोनों प्रतिज्ञाएँ स्वीकार हैं।
कुछ समय बाद राजा को सूचना मिलीमहाराज ! मन्दिर का निर्माण सम्पन्न हो गया है।
BARD
PUR
वाह ! आचार्यश्री की कृपा से एक महान् कार्य सम्पन्न
हो गया।
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27
,
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________________
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य कुछ ईर्ष्यालु पंडित आचार्यश्री की प्रशंसा सुनकर जल उठे। बोले
महाराज, आप जिनको अपना गुरु मानते हैं, वे आपके भगवान का दर्शन भी नहीं करेंगे, ना ही सोमनाथ को हाथ जोड़ेंगे।
000000
ReA
ठीक है, मैंदेखूगा।
दूसरे दिन कुमारपाल हेमचन्द्रसूरि के पास आया
गुरुदेव, आपकी कृपा से सोमनाथ मन्दिर के निर्माण का कार्य सम्पन्न हो गया है। अब मैं सोमनाथ की यात्रा करना चाहता हूँ। क्या आप मेरे साथ चलने
की कृपा करेंगे।
राजन् ! तीर्थयात्रा करना तो सौभाग्य की बात है। हम अवश्य
चलेंगे।
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________________
कलिकाल सर्वज्ञ: हेमचन्द्राचार्य
कुमारपाल ने पूछा
गुरुदेव, आपकी सेवा में पालकी, रथ आदि भिजवा दूं?
नहीं ! पदयात्रा करना हमारा आचार है। हाँ, हम शत्रुजय, गिरनार तीर्थ की यात्रा करते हुए देवपत्तन में 2आपसे मिल लेंगे।
आचार्यश्री तीर्थ-दर्शन करते हुए ठीक समय पर देवपत्तन पहुंच गये। पूजा प्रतिष्ठा के दिन वहाँ के प्रमुख राजपुरोहित भाव वृहस्पति ने निवेदन किया- आचार्यश्री, आप भी
भगवान सोमनाथ की
स्तुति कीजिए। अवश्य
हेमचन्द्रसूरि ने तुरन्त बनाये श्लोकों से महादेव की स्तुति की
जिसने महाराग, महाद्वेष,
महामोह रूपी महामल्ल और कषायों को जीत लिया
है वह महादेव हैं।
# महारागो महाद्वेषो महामोह स्तथैवच। JanE कषायश्च हतो येन महादेवः स उच्यते॥
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________________
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य फिर भाव-विभोर होकर मधुर स्वर में गाने लगे-- पूजा सम्पन्न कर राजा /महादेव के समान उत्तम देव, जिसने जन्म-मरण के बीज ।
आचार्यश्री के साथ आपके समान उत्तम गुरु और राग आदि को नष्ट कर दिया
मन्दिर के गर्भगृह में मेरे समान तत्त्व जिज्ञासु-तीनों है। वह चाहे ब्रह्मा हो, विष्ण, वाह ! गुरुदेव!
आया। चरणों के पास यहाँ उपस्थित हैं। आज मुझे यह महादेव या जिन हो मैं उनकी क्या सुन्दर स्तुति
बैठकर बोला
बताइए सच्चे देव कौन हैं? वन्दना करता हूँ।# की है आपने।
और सच्चा धर्म क्या है?
na
LamjinWANT
SANLALARIALISE
आचार्यश्री कुछ देर ध्यानस्थ हो गये। फिर आँखें आचार्यश्री ध्यान समाधि में स्थिर हो गये। पूरा गर्भगृह खोलकर बोले- मैं तुम्हें इन्हीं देव के धुएँ के बादलों से भर गया। दीपक बुझ गये, अँधकार प्रत्यक्ष दर्शन करवाकर
छा गया। तभी ज्योतिलिंग में से साक्षात् शिवशंकर प्रकट जिज्ञासा का समाधान कराता
हए। प्रकाश चारों तरफ जगमगा उठा। हूँ। मैं ध्यान करता हूँ। तुम
धूप डालते रहना।
AD
30
# भव बीजांकुर जनना रागाद्याः क्षय मुपागता यस्य।
ब्रह्मा वा विष्णुर्वा महेश्वरो वा नमस्तस्मै॥
Page #33
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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य राजा विभोर होकर शिवशंकर के दिव्य रूप का दर्शन करता रहा। फिर एक दिव्य व
कुमारपाल ! धर्म के विषय में तुझे सन्देह है न? सूरीश्वर के वचनों पर विश्वास कर ! तेटी सभी मनोकामनाएँ। सफल होंगी।
शिवशंकर अदृश्य हो गये। राजा ने आँखें खोलीं
गुरुदेव ! लग रहा है जैसे मैंने कोई दिव्य स्वप्न देखा है। मेटी यात्रा सफल हो गई।
31
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________________
इस यात्रा के बाद आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि के प्रति सम्राट् कुमारपाल की गहरी श्रद्धा जम गई। उसने आचार्यश्री से निवेदन किया
आपने माँस, मदिरा त्याग का संकल्प कराया जिसके कारण मेरे सब रूके हुए कार्य पूरे हो गये। अब मैं जीवन भर के लिए माँस, मदिरा का त्याग करना चाहता हूँ और अज्ञानवश अब तक माँस भक्षण का पाप किया है उसका प्रायश्चित्त भी।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
राजन् ! पापों से मुक्त होने के लिए बत्तीस जिनालयों का
निर्माण करवाओ।
हमारे पूरे राज्य में माँस, मदिरा आदि बुराइयों को मिटा देना चाहिए। इन बुराइयों के प्रति जनता के मन में) नफरत जगाओ।
एक दिन कुमारपाल ने वाग्भट्ट मंत्री मंत्री ने सात पुतले बनवाकर एक विचित्र जुलूस निकाला। यह विचित्र जुलूस देखकर सैकड़ों लोगों ने इन वृत्तियों का त्याग किया।
से कहा
देश से निकालो
आचार्यश्री के मार्गदर्शन से कुमारपाल ने तीर्थंकरं के २४ मन्दिर तथा श्रुत देवी आदि के कुल ३२ मन्दिरों का निर्माण करवाया।
१. माँसाहार करने वालों को २. शराब पीने वालों को
३. जुआरियों को
४. शिकार करने वालों को ५. चोरी करने वालों को
६. स्त्रियों को सताने वालों को ७. लड़कियों के सौदागरों को
आचार्यश्री के आशीर्वाद से गुजरात की समृद्धि का विस्तार करते हुए कुमारपाल ने अहिंसा धर्म के प्रचार में जो योगदान किया उसका सजीव चित्रांकन अगले भाग में पढ़िये
देश से निकालो
32
क्रमश:
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रमांक
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18. 19-20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
29.
30. 31-32.
33.
34.
35.
36.
42.
43.
44.
45.
46. 47-48. 49.
50.
51.
52.
53.
54.
55.
56.
57.
58.
59.
60.
61.
62.
63.
64.
प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के प्रकाशनों की सूची
लेखक / सम्पादक
कृति ना
कल्पसूत्र सचित्र
राजस्थान का जैन साहित्य
प्राकृत व शिक्षक
आगम तीर्थ
स्मरण कला जैनागम दिग्दर्शन
जैन कहानियाँ
जाति स्मरण ज्ञान
Half a Tale
गणधरवाद
Jain Inscriptions of Rajasthan
Basic Mathematics
प्राकृत काव्य मंजरी
महावीर का जीवन सन्देश
Jain Political Thought Studies of Jainism
जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग
जैन, बौद्ध और गीता का समाज दर्शन
जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन
जैन कर्म सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन
हेम-प्राकृत व्याकरण शिक्षक
आचारांग चयनिका
वाक्पतिराज की लोकानुभूति
प्राकृत गद्य सोपान
अपभ्रंश और हिन्दी
37.
38. Rasaratna Samucchaya
39.
नीतिवाक्यामृत (English also)
40.
41.
सामायिक धर्म : एक पूर्ण योग गीतमरास एक परिशीलन अष्टापपनिका
नीलांजना
चन्दनमूर्ति
Astronomy and Cosmology Not Far From The River उपमिति-भय-प्रपंच कथा समणसुतं चयनिका
मिले मन भीतर भगवान जैन धर्म और दर्शन
Jainism
दशवैकालिक चयनिका
Ahimsa
वज्जालग्ग में जीवन मूल्य गीता चयनिका
भाषित सूत्र (English also)
नाड़ी विज्ञान एवं नाड़ी प्रकाश ऋषिभाषित एक अध्ययन
उववाइय सुत्तं (English also ) उत्तराध्ययन चयनिका समयसार चयनिका
परमात्मप्रकाश एवं योगसार चयनिका Rishibhashit: A Study अर्हत् बन्दमा
राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द, भाग 1
आनन्दमंत्र बीबीसी
देवच पचीसी सानुवाद
सर्वज्ञ कथित परम सामायिक धर्म
दुःख-मुक्ति सुख-प्राप्ति गाथा सप्तशती
त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र भाग 1
Yogashastra
जिनभक्ति
+
सं. म.
विनयसागर
सं. म. विनयसागर
डॉ. प्रेमसुमन जैन
डॉ. हरिराम आचार्य
अ. मोहन मुनि डॉ. मुनि नगराज उ. महेन्द्र मुनि
उ. महेन्द्र मुनि
Dr. Mukund Lath
म. विनयसागर
Ramvallabh Somani
Prof. L. C. Jain
डॉ. प्रेमसुमन जैन काका कालेलकर
Dr. G. C. Pandey Dr. T. G. Kalghatgi
डॉ. सागरमल जैन
डॉ. सागरमल जैन
डॉ. सागरमल जैन
डॉ. सागरमल जैन
डॉ. उदयचन्द जैन
डॉ. के. सी. सोगानी
डॉ. के. सी. सोगानी
डॉ. प्रेमसुमन जैन
डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन गणेश ललवानी
गणेश ललवानी
Prof. L. C. Jain David Ray
सं. म. विनयसागर डॉ. के. सी. सोगानी विजयकलापूर्ण सूरि गणेश ललवानी
D. D. Malvania
डॉ. के. सी. सोगानी
Dr. J. C. Sikdar
डॉ.
के.
एस. गुप्ता विजयकलापूर्ण मूरि म. विनयसागर
डॉ. के. सी. सोगानी
Surendra Bothara
डॉ. के. सी. सोगानी
डॉ. के. सी. सोगानी
सं. म. विनयसागर
जे. सी. सिकदर
डॉ. सागरमल जैन
अ. गणेश ललवानी
डॉ. के. सी. सोगानी
डॉ. के. सी. सोगानी
डॉ. के. सी. सोगानी
Dr. Sagarmal Jain
म. चन्द्रप्रभसागर
पं. झाबरमल शर्मा
भंवरलाल नाहटा अ. प्र. सज्जनश्री जी विजयकलापूर्ण सूरि कन्हैयालाल लोढा अ. डॉ. हरिराम आचार्य
अ. गणेश ललवानी
Ed. Surendra Bothara
अ. भद्रंकरविजय गणि
मूल्य
200.00
50.00
15.00
10.00
15.00
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15.00
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20.00
40.00
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30.00
30.00
9.00
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25.00
15.00
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15.00
20.00
30.00
20.00
30.00
100.00
30.00
30.00
100.00
25.00
16.00
10.00
30.00
3.00
75.00
30.00
60.00
40.00
30.00
.00.00 100.00
100.00
30.00
Page #36
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________________
65.
66.
67. खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
68.
69.
70.
71.
72.
73.
74.
75.
76.
77.
78.
79.
80.
81..
82.
83.
84.
85.
86.
87.
89.
90.
91.
92.
93.
94.
95.
96.
97.
98.
99.
100.
101.
102.
104.
105.
106.
107.
108.
109.
110.
112.
113.
114.
115.
सहजानन्दघन चरियं आगम युग का जैन दर्शन
116.
117.
आयार सुत्तं सूयगड सुतं
प्राकृत धम्मपद (English also ) नालाडियार (Tamil, Engli नन्दीश्वर द्वीप पूजा पुनर्जन्म का सिद्धान्त
समवाय सुत्तं
जैन पारिभाषिक शब्दकोश जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित्र 'त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 2 राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द, भाग 2 त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 3 दादा दत्त गुरु कॉमिक्स भक्तामर एक दिव्य दृष्टि
वली
दादा"
जिन
(सचित्र)
त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भाग 4
Saman Suttam, Part 1 Jainism in Andhra Pradesh रहनेमि अध्ययन (English also ) उपमिति भव प्रपंच कथा (मूल) मध्य प्रदेश में जैन धर्म का विकास
उपाध्याय म. देवचन्द्र जीवन, साहित्य और विचार
बरसात की एक रात
अरिहंत
योग प्रयोग अयोग
प्रबन्ध कोश का ऐतिहासिक विवेचन
पंचदशी एकांकी संग्रह
Jainism in India
ज्ञानसार सानुवाद (English also)
विज्ञान के आलोक में जीव अजीव तत्त्व
ज्योति कलश छलके
जैन कथा साहित्य विविध रूपों में
:
Neelkeshi
त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित्र भाग 5
Jain Aachar Siddhant Aur Swarup
सकारात्मक अहिंसा द्रव्य विज्ञान
अस्तित्व का मूल्यांकन
दिव्यद्रष्टा महावीर
जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
श्री स्वर्णगिरि : जालोर
Philosophy and Spirituality of Shrimad Rajchandra कल्याण मन्दिर ( यन्त्र विधान सहित )
सचित्र भक्तामर स्तोत्र
Studies in Jainology Prakrit Literature and Languages सचित्र पार्श्वकल्याण कल्पतरु
भंवरलाल नाहटा सुख मालवणिया भंवरलाल नाहटा, म. विनयसागर
अ. म. चन्द्रप्रभसागर अ.न. ललितप्रभसागर
3826 मोतीसिह भोमियो का रास्ता जयपुर-302003 (राज.) फोन 561876
Q
स. डॉ. भागचन्द जैन
सं. म. विनयसागर
सं. म. विनयसागर
डाॅ. एस. आर. व्यास
अ. म. चन्द्रप्रभसागर
म. चन्द्रप्रभसागर
म. राजेन्द्र मुनि शास्त्री अ. गणेश ललबानी
पं. झाबरमल शर्मा
अ. गणेश ललवानी म. ललितप्रभसागर
डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा
सं. म. विनयसागर
सं. म. विनयसागर
अ. गणेश ललवानी
Tr. Dr. K. C. Sogani Dr. Jawaharlal Jain
सं. डॉ. वी. के. खडबडी सं. विमलबोधिविजय डॉ. मधूलिका वाजपेयी म. ललितप्रभसागर गणेश ललवानी
डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा डॉ. प्रवेश भारद्वाज
गणेश ललवानी
Ed. Ganesh Lalwani
अ. गणि मणिप्रभसागर
सं. कन्हैयालाल लोढ़ा
म. ललितप्रभसागर
डॉ. जगदीशचन्द्र जैन
प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर की चित्रकथाओं की प्रकाशन सूची 2. भगवान ऋषभदेव (अप्राप्य) 3. 5. भगवान महावीर की बोध कथाएँ 6. बुद्धिनिधान अभयकुमार
1. क्षमादान
9-10. करुणानिधान भगवान महावीर
11
14. मेघकुमार की आत्मकथा 18. सती अंजना सुन्दरी 23. जगतगुरु श्री हरविजय सुरि 27. धरती पर स्वर्ग
राजकुमारी चन्दनबाला 15. युवायोगी जम्बूकुमार 20. भगवान नेमिनाथ 24. वचन का तीर 28. नन्द मणिकार
( प्रत्येक पुस्तक का मूल्य 17.00 रुपया मात्र) पुस्तक-प्राप्ति स्थान
Ed. Prof. A Chakravarty
अ. गणेश ललबानी
A. Devendra Muni
सं. कन्हैयालाल लोढ़ा डॉ. साध्वी विश्रा डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा डॉ. साध्वी दिव्यप्रभा डॉ. सागरमल जैन भंवरलाल नाहटा Dr. U. K. Pungalia डॉ. साध्वी मुक्तिप्रभा श्रीचन्द सुराना 'सरस' Dr. B. K. Khadabadi श्रीचन्द सुराना 'सरस'
प्राकृत भारती अकादमी
20.00 100.00 50.00
40.00
30.00
150.00
120.00
15.00
50.00
100.00
10.00
100.00
60.00
100.00
100.00
5.00
51.00
150.00
50.00
80.00
75.00
450.00
20.00
200.00
130.00
100.00
45.00
100.00
100.00
100.00
100.00
100.00
80.00
40.00
40.00
100.00
100.00
120.00
300.00
110.00
80.00
100.00
णमोकार मंत्र के चमत्कार
4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ (अप्राप्य) 8. किस्मत का धनी धन्ना 12. सती मदनरेखा (अप्राप्य ) 16. राजकुमार श्रेणिक 21. भाग्य का खेल 25. अजातशत्रु कूणिक 29. कर भला हो भला
51.00
100.00
60.00
180.00
100.00
325.00
22. करकण्डू जाग गया 26. पिंजरे का पंछी
300.00
30.00
13. सिद्धचक्र का चमत्कार (अप्राप्य )
17. भगवान मल्लीनाथ
30. तृष्णा का जाल
( पुस्तक क्रमांक 9-10 का मूल्य 34.00 रुपया मात्र )
13-ए, कैलगिरि हॉस्पिटल रोड, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017 (राज.) फोन 524827524828
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जैन साहित्य के इतिहास में एक नया शुभारम्भ सचित्र आगम हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ
जैन संस्कृति का मूल आधार है आगम। आगमों के कठिन विषय को सुरम्य रंगीन चित्रों के द्वारा मनोरंजक और सुबोध शैली में मूल प्राकृत पाठ, सरल हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक प्रयत्न।
के अब तकप्रकाशित आगम 6 सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र मूल्य 500.00/सचित्र दशवैकालिक सत्र
मूल्य 500.00 (भगवान महावीर की अन्तिम वाणी अत्यन्त शिक्षाप्रद, जैन श्रमण की सरल आचार संहिता : जीवन में पद-पद पर ज्ञानवर्द्धक जीवन सन्देश।)
काम आने वाले विवेकयुक्त संयत व्यवहार, भोजन, भाषा,
विनय आदि की मार्गदर्शक सूचनाएँ। आचार विधि को रंगीन सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र
मूल्य 500.00
चित्रों के माध्यम से आकर्षक और सुबोध बनाया गया है। अष्टम अंग। 90 मोक्षगामी आत्माओं का तप-साधना पूर्ण रोचक जीवन वृत्तान्त।
सचित्र नन्दी सूत्र
मूल्य 500.00
ज्ञान के विविध स्वरूपों का अनेक युक्ति एवं दृष्टान्तों के सचित्र ज्ञाता धर्मकथांगसूत्र (भाग 1,2)
साथ रोचक वर्णन। चित्रों द्वारा ज्ञान के सूक्ष्म स्वरूपों को प्रत्येक का मूल्य 500.00 जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। भगवान महावीर द्वारा कथित बोधप्रद दृष्टान्त एवं रूपकों आदि
सचित्र आचारांग सूत्र को सुरम्य चित्रों द्वारा सरल सुबोध शैली में प्रस्तुत किया गया है।
मूल्य 500.00
जैन धर्म के आचार विचार का आधारभूत शास्त्र। जिसमें सचित्र कल्पसूत्र
मूल्य 500.00| अहिंसा, संयम, तप, अप्रमाद आदि विषयों पर बहुत ही पर्युषण पर्व में पठनीय 24 तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र व सुन्दर विवेचन है। भगवान महावीर की साधना का भी स्थविरावली आदि का वर्णन। रंगीन चित्रमय।
रोचक इतिहास इसमें है।
आचासंग सूत्र CHARANGA SET
प्रकाशित सचित्र आगमों के
सैट का मूल्य 4,000/'प्राप्ति स्थान :
श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन : (0562) 351165/
सचित्र उत्तराध्ययन
राध श्री रवि
सवित्र
दशकालिक सूत्र
ज्ञाताधमकथा
श्रीकलासूत्र
Jnata Dharma (kathānga Sita
DASAYAIKALIKA SUTLA
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________________ आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी महाराज का जीवन निर्माणकारी श्रेष्ठसाहित्य जीवनी सार्थक शिताया कैसे हो? भाव करे भवपार जीवन सार्थक कैसे हो? नव पद पूजे शिव पद पावे भाव करे भव पार मानव जीवन को सफल नवपद आराधना की महिमा भाव की महत्ता के साथ बारह बनाने वाले सात स्वर्ण सूत्र स्वरूप और विधि अत्यन्त रोचक शैली में भावनाओं पर चिन्तनपरक प्रवचन मूल्य 50.00/- रुपये मूल्य 100.00/- रुपये मूल्य 100.00/- रुपये गागर में सागर : लघु में विराट अल्पमोली पॉकेट पुस्तकें infaunabrainal वसdita की साया जो लोएसन्त बाहण जीयन शुद्धि का 18 तनाव से मुक्ति पानी की कला लजसका नाम आटलताको आTATUR जित नमस्कार महामंत्र जन कल्याणकारी - जीवन शुद्धि का व्यसन मुक्त जीवन तनावों से मुक्ति आराधना कैसे करें जैनधर्म आधार : आत्म शुद्धि सुखी जीवन पाने की कला मूल्य 10.00/- रुपये मूल्य 10.00/- रुपये मूल्य 10.00/- रुपये मूल्य 10.00/- रुपये मूल्य 15.00/- रुपये रंगीन चित्रों के माध्यम से जैन धर्म के युगपुरुषों के जीवन का ऐतिहासिक चित्रण आर्यसुधर्मा पुणिया श्रावक अमृत पुरुष गौतम मूल्य 21.00/ रुपये आगमों के प्रथम प्रवक्ता आर्य सुधर्मा मूल्य 17.00/ पूणिया श्रावक मूल्य 17.00/ रुपये रुपये शीघ्र प्रकाशमान पुस्तके आगम ज्ञान गंगा (चित्रों सहित) कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य भाग-1. हेमचन्द्राचार्य और सम्राट कुमारपाल भाग-2 * महायोगी स्थूलभद्र भाग-1. महायोगी स्थूलभद्र भाग-2 प्राप्ति स्थान श्री दिवाकर प्रकाशन श्री आत्म-वल्लभ इंटरप्राइजेज A-7, अवागढ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, 236,/4, इंडस्ट्रियल एरिया, गुप्ता रोड, एम. जी. रोड, आगरा-282002 फोन : 351165 लुधियाना-7. श्री आस