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________________ कलिकाल सर्वज्ञ: हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल भक्तिपूर्वक हेमचन्द्राचार्य के दर्शनों के लिए गया। उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू छलक रहे थे। उसने निवेदन किया-RITTANT गुरुदेव ! इस राज्य को राजन् ! यदि तू उपकारों स्वीकार कर मुझे कृतार्थ का बदला चुकाना चाहता कीजिए। आपके उपकारों का है तो दो काम कर। बदला मैं कैसे चुकाऊँ? पणजी Yoeवस्या KaranNANDY पहला, जिनेश्वर देव के धर्म पर श्रद्धा और विश्वास कर। दूसरी बात, अपने राज्य से हिंसा और दुर्व्यसनों को समाप्त कर। गुरुदेव ! आप जैसा कहेंगे। वैसा ही करूंगा। राजा कुमारपाल संस्कारों से शिवभक्त था। आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि के सम्पर्क से उसके मन में अहिंसा और जिन भक्ति की भावना जगी। आचार्यश्री के उदार जन कल्याणकारी विचारों से वह बहुत प्रभावित था। साथ ही उनकी यौगिक शक्तियों से अनेक विकट समस्याओं का समाधान भी हुआ और उनकी परम निस्पृहता से राजा उनके प्रति अनन्य आस्थावान बन गया। अपने कल्याण का मार्ग पूछने पर आचार्यश्री ने उसे दो ही मार्ग बताये। एक जिन भक्ति का दूसरा अहिंसा पालन का। जिन भक्ति से प्रेरित होकर राजा ने अपार द्रव्य खर्च करके अनेक भव्य नयनाभिराम मन्दिरों का निर्माण कराया। पाटण शहर में उसने एक अतीव भव्य जिन मन्दिर बनवाया जिसमें नेमिनाथ भगवान की सौ इंच ऊँची प्रतिमा की प्रतिष्ठा आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि के हाथों से सम्पन्न करवाई। राजा ने अपने पिता की स्मृति को जोड़ते हुए इस मन्दिर का नाम 'त्रिभुवनपाल चैत्य' रखा। Jain Education International 25 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002839
Book TitleHemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNityanandsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size24 MB
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