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उन्हीं दिनों कुमारपाल आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि के सम्पर्क में आया। उन्होंने उसकी तेजस्वी मुखमुद्रा और हस्तरेखाएँ पढ़ीं।
वत्स ! तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, परन्तु वर्तमान भयंकर संकटों से घिरा है।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
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गुरुदेव, मैंने आपका चरण स्पर्श किया है, अब मुझे कोई तूफान विचलित नहीं कर सकेगा।
आचार्यश्री ने उसे सावधान रहने के लिए कहा।
जान मुट्ठी में लिए छुपता-छुपाता जंगल-जंगल भटकता हुआ एक बार खंभात पहुँच गया। वहाँ एक जिनालय के चबूतरे पर बैठ गया। मन्दिर से एक महिला पूजा करके बाहर आई। कुमारपाल ने पूछावह सामने इतनी भीड़ क्यों लगी है?
तुम्हें मालूम नहीं, आचार्य हेमचन्द्र सूरि जी का प्रवचन चल रहा है।
कुमारपाल जैसे ही अपने स्थान पर वापस आया, उसे सूचना मिली
कुमार, आपको पकड़ने चारों तरफ सिद्धराज के
गुप्तचर घूम रहे हैं।
आचार्यश्री ने मुझे पहले ही
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सावधान कर दिया था।
| कुमारपाल वेष बदलकर अकेला ही जंगलों में निकल गया।
यह सुनकर कुमारपाल को धीरज, बँधा। वह चुपके से भीड़ में जाकर बैठ गया।
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