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आचार्यश्री
राजन् ! जो भवितव्य है, उसे स्वीकारना ही होगा और जो संभव नहीं है उसके लिए चिन्ता की आग में जलना भी समझदारी नहीं है।
नहीं, नहीं ! मैं
उस दुष्ट को पकड़कर जेल में बन्द करवा दूँगा।
कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य
राजमहल में आकर सिद्धराज ने गुप्तचरों को आदेश दिया
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कुमारपाल बचपन से ही बड़ा बुद्धिमान, वीर और साहसी था। साथ ही बड़ा दयालु भी था। वह महत्वाकांक्षी होते हुए भी अपने पर संयम रखना जानता था। खतरों से खेलना, अन्याय, अनीति से संघर्ष करना और प्रजा के दुःख-दर्द दूर | करना यह उसका स्वभाव था। भोपलदेवी नाम की राजकुमारी के साथ उसका विवाह हुआ। यद्यपि सिद्धराज और त्रिभुवनपाल के बीच मधुर सम्बन्ध थे। दोनों | एक दूसरे के मेहमान भी होते थे परन्तु कुमारपाल बहुत ही स्वाभिमानी था। उसके पराक्रमी, निर्भीक और तेज तर्रार स्वभाव के कारण सिद्धराज मन ही मन उससे सशंकित और भयभीत सा रहता था।
कुमारपाल का परिचय
गुजरात के चौलुक्यवंशी क्षत्रियों में मूलराज नाम के एक पराक्रमी राजा हुए। | इनके पश्चात् चामुण्डराय, दुर्लभराज और भीमदेव जैसे शूरवीर, विद्याप्रेमी और | दानेश्वेरी राजाओं ने गुजरात के वैभव में चार चाँद लगाये। राजा भीमदेव के दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी का पुत्र क्षेमराज था। छोटी रानी के पुत्र का नाम कर्ण था।
| क्षेमराज दधिस्थली का तथा कर्ण पाटण का राजा था। कर्ण का पुत्र जयसिंह चामुण्डराय
| सिद्धराज पाटण के राजसिंहासन पर बैठा। उधर क्षेमराज का पुत्र देवप्रसाद दधिस्थली का राजा बना। देवप्रसाद के बाद उसका पुत्र त्रिभुवनपाल दधिस्थली के राजसिंहासन पर बैठा।
त्रिभुवनपाल बड़ा शूरवीर और प्रजावत्सल था। त्रिभुवनपाल की पत्नी का नाम था कश्मीरा देवी। वह रूप, गुण, शील की मूर्ति थी। उसके तीन पुत्र थेमहीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल ।
चौलुक्य वंशावली
कुमारपाल जहाँ भी है, जिन्दा यामरा, उसे पकड़कर लाओ।
देव प्रसाद
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क्षेमराज
महीपाल
मूलराज
- दुर्लभराज भीमदेव
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कर्ण
जयसिंह सिद्धराज
त्रिभुवनपाल
कीर्तिपाल कुमारपाल
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