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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य प्रवचन समाप्त हुआ। जनता चली गई। अकेला कुमारपाल आचार्यश्री तभी एक प्रौढ़ व्यक्ति आचार्यश्री के पास आया। के पास आया। आचार्यश्री ने देखा। मैले-कुचैले कपड़ों में लिपटा मिट्टी आचार्यश्री ने कहासना कोई चन्द्रकान्त मणि हो। उनकी पारदर्शी आँखों ने तुरन्त उस तेजस्वी चेहरे को पहचान लिया। आशीर्वाद का हाथ उठा
कुमारपाल!
धर्मलाभ ! कब
आये?
इनको पहचानते हो, गुजरात के महामंत्री
उदयन।
गुरुदेव, धर्मलाभ तो तब करें जब कोई चैन से जी पायें। मैं तो जान मुट्ठी में लिए दर-दर भटक रहा हूँ। सात दिन से पेट में अन्न का एक कण नहीं पहुंचा है। क्या इसी प्रकार दुःखों की
आग में जलना ही मेरा प्रारब्ध है? उदयन नजर गड़ाकर कुमारपाल को पहचानने की कोशिश करता है। आचार्यश्री बोले
कुमारपाल ! कुछ समय बाद ही तुम गुजरात के
राजा बनोगे।
कुमार; योगी पुरुषों
का वचन कभी असत्य नहीं होता।
गुरुदेव ! आज तो मेरी दशा एक भिखारी से भी बदतर है। आपका यह वचन असम्भव जैसा लगता है।
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