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कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य | फिर उन्होंने अपने शिष्य से कहा-
कुमारपाल गद्गद् होकर बोलाएक कागज लो, विक्रम संवत ११६६ मगसर । गुरुदेव ! यदि आपका। वत्स ! जैन संत न तो राज्य लेते और लिखो- वदि ४ को कुमारपाल का कथन सच होगा तो मैं
हैं और न ही राजा बनते हैं। हाँ, राज्याभिषेक होगा। पूरा राज्य आपके चरणों में
तुम जब राजा बनो; जैनधर्म को समर्पित कर दूंगा। आप
दुनियाँ में फैलाना और घर-घर ही राजाधिराज बनेंगे।
अहिंसा धर्म का पालन करवाना।
आचार्यश्री ने एक कागज कुमारपाल को दिया एक महामंत्री उदयन को।
फिर हेमचन्द्राचार्य ने महामंत्री उदयन से कहा
मंत्रिवर ! इस विपत्ति के समय आप कुमार की
सहायता कीजिए।
मंत्री उदयन कुमारपाल को अपने घर ले आया। स्नान और भोजन करके कुमारपाल ने कहा
मंत्रिवर ! आज महीनों बाद स्नान किया है और कई| दिनों बाद पेट भर भोजन मिला है। अब विश्राम
करना चाहता हूँ। अवश्य कुमार,
तुम यहाँ सुरक्षित हो।
कुमारपाल मंत्रीवर की हवेली के भूमिगृह में छुपकर रहने लगा।
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