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कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य
गुजरात के धंधुका नगर में चाचिग नाम का एक सेठ रहता था। उसकी पत्नी थी पाहिनी देवी। एक रात पाहिनीदेवी ने स्वप्न देखा-परासीबारे स पाहिनी / ले मैं तुझे एका
दिव्य रत्न दे रही हूँ।
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पाहिनी वह रत्न लेकर गुरुदेव श्री देवचन्द्रसूरी के पास जाती है
पाहिनी ने दोनों हाथ बढ़ाये, देवी ने उसकी हथेली पर रत्न रख दिया।
गुरुदेव आप यह रत्न ग्रहण कीजिए।
गुरुदेव ने पाहिनी से रत्न ग्रहण कर लिया।
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