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कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य
भगवान महावीर के पश्चात जैन परम्परा में अनेक प्रभावशाली विद्यासिद्ध लोकोपकारी महान आचार्य हुए जिनमें आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि का नाम स्वर्ण अक्षरों में मंडित है ।
आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि असाधारण विभूतियों से सम्पन्न महामानव थे। वे उत्कृष्ट श्रुत पुरुष थे। व्याकरण-कोष-न्याय-काव्य छन्दशास्त्र-योग-तर्क- इतिहास आदि विविध विषयों पर अधिकारिक साहित्य का निर्माण कर सरस्वती के भण्डार को अक्षय श्रुत निधि से भरा था। वे ज्ञान के महासागर । साथ ही उन्होंने गुजरात के राजा सिद्धराज और कुमारपाल को जैनधर्मानुरागी बनाकर जिनशासन के गौरव में चार चांद लगाये । धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में नवचेतना जगाई। उनकी बहुमुखी विलक्षण प्रतिभा के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए गुर्जर नरेश कुमारपाल ने उन्हें 'कलिकाल सर्वज्ञ' के विरुद से अलंकृत किया। शिवभक्त राजा सिद्धराज उनकी विद्वत्ता, नीतिज्ञता, निस्पृहता, धार्मिक सहिष्णुता, उदारता और समन्वयशीलता का सदा सन्मान करते थे। संपूर्ण पश्चिमी भारत में अहिंसा के प्रचार में आचार्यश्री का योगदान अद्वितीय माना जाता है। साथ ही कला, साहित्य, संस्कृति के अभ्युदय में उनका योगदान शताब्दियों तक जीवंत रहेगा। उनका समय गुजरात राज्य के बहुमुखी उत्कर्ष का समय था ।
आचार्यश्री के विराट व्यक्तित्व का चित्रण पृष्ठों की संख्या सीमित होने के कारण एक भाग में सम्भव नहीं हो सका है। इसलिए उनका चरित्र दो भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। दूसरा भाग भी इसके साथ ही शीघ्र प्रकाशित हो रहा है ।
अनेक ग्रंथों व प्रचलित कथाओं के आधार पर प्रस्तुत चित्रकथा में सार रूप में आचार्यश्री एवं महाराज कुमारपाल के जीवन की प्रेरणाप्रद महत्वपूर्ण घटनाओं को चित्रित करने का प्रयास किया है आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि जी म. ने । हम आपके आभारी हैं ।
-महोपाध्याय विनय सागर
श्रीचन्द सुराना "सरस"
लेखक : आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरि.
सम्पादक : मुनि चिदानंद विजय प्रबंध सम्पादक : संजय सुराना
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सह-सम्पादक : श्रीचन्द सुराना "सरस" चित्रांकन : श्यामल मित्र
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