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________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य फिर भाव-विभोर होकर मधुर स्वर में गाने लगे-- पूजा सम्पन्न कर राजा /महादेव के समान उत्तम देव, जिसने जन्म-मरण के बीज । आचार्यश्री के साथ आपके समान उत्तम गुरु और राग आदि को नष्ट कर दिया मन्दिर के गर्भगृह में मेरे समान तत्त्व जिज्ञासु-तीनों है। वह चाहे ब्रह्मा हो, विष्ण, वाह ! गुरुदेव! आया। चरणों के पास यहाँ उपस्थित हैं। आज मुझे यह महादेव या जिन हो मैं उनकी क्या सुन्दर स्तुति बैठकर बोला बताइए सच्चे देव कौन हैं? वन्दना करता हूँ।# की है आपने। और सच्चा धर्म क्या है? na LamjinWANT SANLALARIALISE आचार्यश्री कुछ देर ध्यानस्थ हो गये। फिर आँखें आचार्यश्री ध्यान समाधि में स्थिर हो गये। पूरा गर्भगृह खोलकर बोले- मैं तुम्हें इन्हीं देव के धुएँ के बादलों से भर गया। दीपक बुझ गये, अँधकार प्रत्यक्ष दर्शन करवाकर छा गया। तभी ज्योतिलिंग में से साक्षात् शिवशंकर प्रकट जिज्ञासा का समाधान कराता हए। प्रकाश चारों तरफ जगमगा उठा। हूँ। मैं ध्यान करता हूँ। तुम धूप डालते रहना। AD 30 # भव बीजांकुर जनना रागाद्याः क्षय मुपागता यस्य। ब्रह्मा वा विष्णुर्वा महेश्वरो वा नमस्तस्मै॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002839
Book TitleHemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNityanandsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size24 MB
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