Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 16
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य उन्हीं दिनों पाटन में चौलक्य राजवंश का एक शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी राजा गरिश्वर जयसिंह सिद्धराज श्वर जयसिंह सिद्धराज आसपास के प्रदेशों को जीतकर अपना प्रभुत्व बढ़ाता जा रहा था। उसने मालवराज यशोवर्मन को भी जीतकर अपने आधीन कर लिया था। राजधानी पाटन में विजयोत्सव मनाया जा रहा था। इस अवसर पर सिद्धराज ने आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरि को आशीर्वाद प्रदान करने सादर आमन्त्रित किया। राजसभा में अनेक राजाओं, सामन्तों के अलावा सभी धर्मों के प्रमुख साधू-सन्त पधारे। अनेक राजा सामन्तों ने सिद्धराज को विविध मूल्यवान उपहार भेंट किये। सामने धारा नगरी (मालव) से प्राप्त हीरे, मोती आदि मूल्यवान वस्तुएँ तथा राजा भोज के ज्ञान भण्डार के अनेक स्वर्ण लिखित ग्रन्थ भी रखे थे। राजा सिद्धराज ने कहामालवदेश की कला, संस्कृति और साहित्य बहुत | ही उच्चकोटि का रहा है। हमारा गजरात शौर्य । और समृद्धि में किसी से कम नहीं है, परन्तु मैं चाहता हूँ गुजरात का साहित्य और कला वैभव / इससे भी बढ़ा-चढ़ा हो। क्या यह सम्भव है? 29289 200000 राजा ने एक पुस्तक हाथ में लेकर बताया यह राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत व्याकरण है। "सरस्वती व कंठाभरण" क्या गुजरात का कोई विद्वान् ऐसी व्याकरणEN रचना कर सकता है? सभी विद्वान् एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सन्नाटे को तोड़ते हुए हेमचन्द्राचार्य ने कहा राजन् ! गुजरात में भी विद्वानों की कमी नहीं है। मैं इससे भी श्रेष्ठ व्याकरण रचना कर सकता हूँ। WIVUARY -14 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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