Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य एक बार आचार्य देवचन्द्र सूरि अपने शिष्यों के साथ नागपुर पधारे। मुनि सोमचन्द्र, वीरचन्द्र मुनि के साथ भिक्षा के लिए निकले। एक विशाल हवेली में भिक्षा के लिए गये। हवेली के विशाल आँगन में सेठ का परिवार चार पुत्र, चार पुत्र वधुएँ, पोता-पोती, सेठ धनद और सेठानी यशोदा आदि बैठे हुए पानी में आटा, नमक मिलाकर राब जैसा घोल बनाकर पी रहे थे। मुनि सोमचन्द्र ने देखा और अपने साथी मुनि से पूछा पूज्यवर, धनद सेठ की यह यह समय का फेर है। BAS ISARराजमहल-सी विशाल हवेली, ये सभी (किसी जमाने का कोटीपति आज सुकुमार परिवारीजन दीन-हीन बने देखो, मिट्टी के बर्तनों में राब क्यों बैठे हैं? पीकर समय गुजार रहा है। - आप इस सेठ को गरीब समझ रहे हो, देखो घर के उस)। कोने में सोने, चाँदी की मोहरों का ढेर लगा है। सच ही तो कह रहा हूँ मुनिवर ! मुझे तो यह सेठ गरीब नहीं, कंजूस दीखता है। जिसके घर में सोने के मोहरों का ढेर लगा है। वह दरिद्र कैसे? ATTI मुनि वीरचन्द्र आश्चर्य से सोमचन्द्र मुनि की तरफ देखने लगे छोटे महाराज, क्या कह रहे हो? LIOUTUWAVAYAM DOMAAVAM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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